Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 585
________________ यमपुराण या भांति महाराणी पटराणियोंसे हनूमान बात करते जिनमन्दिरोंकी प्रशांसा करते मन्दिरके समीप आए विमानसे उतर महा हर्षित होय प्रदक्षिणा दई वहां श्रीभगवानके अकृत्रिम प्रतिबिंब सर्व अतिशय विराजमान महा ऐश्वर्यकर मन्डित महा तेज पुंज देदीप्यमान शरद्के उज्ज्वल वादर तिनमें जैसे चन्द्रमा सोहे तैसे सर्व लक्षण मंडित, हनूमान हाथ जोड रणवास सहित नमस्कार करता भया। कैसा है हनूमान ? जैसे ग्रहतारावोंके मध्य चन्द्रमा सोहे तैसा राज लोकके मध्य सोहे है जिनेंद्रके दर्शनकर उपजा है अति हर्ष जिसको सो संपूर्ण स्त्रीजन अति आनन्दको प्राप्त भई रोमांच होय आऐ नेत्र प्रफुल्लित भए विद्याधरी परम भक्तिकर युक्त सर्व उपकरणों सहित परम चेष्टाकी धरणहारी महापवित्र कुलमें उपजी देवांगनाओंकी न्याई अति अनुरागसे देवाधिदेवकी विधिपूर्वक पूजा करती भई महा पूजा करती भई महा पवित्र पद्मवद आदिकका जल अर महा सुगन्ध चन्दन मुक्ताफलनिके अक्षत स्वर्णमई कमल तथा पद्मराग मणिमई तथा चन्द्रकांति मणिमई तिनकर पूजा करती भई अर कल्पवृक्षनिके पुष्प अर अमृतरूप नैवेद्य अर महा ज्योतिरूप रत्नोंके दीप चहाय अर मलयागिरि चन्दन आदि महासुगन्ध जिनकर दशोदिशा सुगंधमई होय रही हैं अर परम उज्ज्वल महा शीतल जल अर अगरु श्रादि महापवित्र द्रव्योंकर उपजा जी धूप सो खेवती भई अर महा पवित्र अमृत फल चढावती भई अर रत्नोंके चूर्णकर मण्डला मांडती भई महा मनोहर अष्ट द्रव्योंसे पतिसहित पूजा करती भई । हनूमान राणीयोंके सहित भगवानकी पूजा करता कैसे सोहे है जैसा सौधर्म इन्द्र पूजा करता सोहै । कैसा है हनूमान जनेऊ पहिरे सर्व आभूषण पहिरे महीन वस्त्र पहिरे महा पवित्र पापरहित बानरके चिन्हका है देदीप्यमान रत्नमई मुकुट जिसके महाप्रमोदका भरा फूल रहे हैं नेत्र कमल जिसके सुन्दर है बदन जिसका पूजाकर पापनिके नाश करणहारे स्तोत्र तिनकर सुर असुरोंके गुरु जिनेश्वर तिनके प्रतिबिंबकी स्तुति करता भया, सो पूजा करता अर स्तुति करता इंद्रकी अप्सरावोंने देखा सो अति प्रशंसा करती भई अर यह प्रवीण बीण लेयकर जिनेद्रचन्द्रके यश गावता भया जे शुद्ध चित्त जिनेन्द्रकी पूजामें अनुरागी हैं सर्व कल्याण तिनके समीप हैं तिनको कुछ ही दुर्लभ नहीं तिनका दर्शन मंगलरूप है उन जीवोंने अपना जन्म सुफल किया, जिन्होंने उत्तम मनुष्य देह पाय श्रारकके व्रत थर जिनवरमें दृढ भक्ति धारी अपने करमें कल्याणको धरा जन्मका फल तिन ही पाया हनूमानने पूजा स्तुति बन्दनाकर बीणा बजाय अनेक राग गाय अद्भुत स्तुति करी यद्यपि भगवानके दर्शनसे विछुरनेका नहीं है मन जिसका तथापि चैत्यालयमें अधिक न रह्या, मत कोई आच्छादन लागे तातै जिनराजके चरण उरमें धर मन्दिरसे बाहिर निकपा, विमानोंमें चढ हजारों स्त्रियोंकर संयुक्त सुमेरुकी प्रदक्षिणा दी, जैसे सूर्य देय तैसे श्रीशैल कहिए हनूमान सुन्दर है क्रिया जिसकी सो शैलराज कहिए सुमेरु उसकी प्रदक्षिणा देय समस्त चैत्यालयोंमें दर्शन कर भरतक्षेत्र की ओर सन्मुख भया सो मार्गमें सूर्य अस्त होय गया अर संध्या भी सूर्यके पीछे विलय गई कृष्णपक्षकी रात्रि सो तारा रूप बंधुघोंकर मंडित चन्द्रमारूप पति विना न सोहती भई । हनः मानने तले उतर एक सुरदुन्दुभी नामा पर्वत वहां सेना सहित रात्री व्यतीत करी, कमल आदि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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