Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 599
________________ पभ.पुरा है मित्र आज तुम क्रोथरूप क्पों भये हो तब वह कहता भया जब मैं गृहपक्षी था तो रामने मुझे प्यारे पुत्रकी न्याई पाला पर जिनधर्मका उपदेश दिया मरण समय नमोकार मंत्र दिया उसकर मैं देव भया अब वह तो माईके शोक कर तप्तायमान है अर शत्रुकी सेना उसपर आई है तबकृतांतवक्र का जीव जो देव था उसने अवधि जोडकर कही-हे मित्र मेरा वह स्वामी था मैं उसका सेनापति था मुझे बहुन लडाया भ्रात पुत्रोंसे भी अधिक गिना अर मेरे उनके वचन हैं जब तुमको खेद उपजेगा तब तिहारे पास मैं पाऊंगा, सो ऐसा परस्पर कहकर वे दोनों देव चौथे स्वर्गके वासी सुन्दर प्राभूषण पहिरे मनोहर है केश जिनके सो अयोध्याकी ओर आए दोनो विचक्षण परस्पर दोनों बतलाए कृतांतवकके जीयने जटायुके जीवसे कहा तुम तो शत्रुकी सेनाकी ओर जावो उनकी बुद्धि हरों पर मैं रघुनाथ के समीप जाऊहूं तब जटायुका जीव शत्रुओं की ओर गया कामदेवका रूपकर उनको मोहित किया पर उनको ऐसी माया दिखाई जो अयोध्याके आगे अर पीछे दुरगम पहाड खडे हैं पर अयोध्या अपार है यह अयोध्या काहसे जीती न जाय यह कोशलीपुरी सुभटों कर भरी है कोट आकाश लग रहे हैं अर नगरके बाहिर भीतर विद्याधर भरे हैं हमने न जानी जो यह नगरा महा विषम है धरतीमें देखिए तो आकाशमें देखिए तो देव विद्याधर भर रहे हैं अब कोन प्रकार हमारे प्राण बचे कैसे जीवते घर जावे जहां श्रीराम देव विराजें सो नगरी हमसे कैसे लई जाय, विक्रियाशक्ति विद्याधरनिमें कहां ? हम ऐसी विना विचरे ये काम किया जो पटबीजना सूर्यसे वैर विचारे तो क्या कर सके अब जो भागो तो कोन राह होयकर भागो म र्ग नहीं या भांति परस्पर वार्ता कर कांपने लगे समस्त शत्रुओं की सेना विह्वल भई तब जटायुके जीवने देव विक्रियाकी क्रीडा कर उनको दक्षिणकी ओर भागनेका माग दिया वे सब प्राण रहित होय कांपते भागे जैसे पिचान आगे परे वे भ.गें। आगे जाय कर इन्द्रजीतके पुत्रने विचारी जो हम विभीषणको कहा उत्तर देगें अर लोकको कहा मुख दिखावेगे ऐया विचार लज्जात्रान् होय सुन्दरके पुत्र चारो रत्न सहित अर विद्याधरनि सहित इन्द्रजीतके पुत्र वज्र माली रतिवेग नामा मुनिके निकट मुनि भए, तब यह जटायुका जीव देव उन साधु प्रोंका दर्शन कर अपना सफल वृतांत कह क्षमा कराय अयोध्या आया जहां राम भाईके शोककर बालककीसी चेष्टा कर रहे हैं जिनके संबोधवेके अर्थ वे दोनों देव चेष्टा करते भए. कृतांतवक्र का जीव सूके वृक्ष को सींचने लगां पर जटायुझा जीव मृतक बैल युगल तिन कर हलवाहवेका उद्यमी भया अर शिला ऊपर बीज बोने लगा सो ये भी दृष्टांत रामके मनमें न आया बहुरि कृतांतवक्र का जीव रामके आगे जलको घृतके अर्थ विलोक्ता भया अर जटायुका जीव बालू रेतको पानीमें तेलके निमित्त पेलता भया सो इन दृष्टां नि कर रामको प्रतिबोध न भया अर अनेक कार्य इसी भांति देवोंने किए तब रामने पूछी तुम बड़े मूह हो, सूका वृत सींचा सो कहा अर मूवे बैनोसे हल वाहना करो सो कहा अर शिला कार चीज बोवना मो कहा अर जनका विलोवना पर बालूका पेलना इत्यादि कार्य किए सो कोन अर्थ ? तब वे दोनों कहते भए तम भाईके मृतक शरीरको वृथा लिए फिरो हो उसमें क्या ? यह वचन सुन कर लक्ष्मणको गाहा उरसे लगाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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