Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 602
________________ एकसौ उन्नीसा पर्व हैं अर खबर आई है कि मुनिसुव्रतनाथके वंशमें उपजे चार ऋदिके धारक स्वामी सुत्रत महावत के थारक कामक्रोधके नाशक पाए हैं। यह वार्ता सुनकर महाअानन्दके भरे राम रोमांच होय गया है शरीर जिनका फूल गए है नेत्र कमल जिनके अनेक भूचर खेचर नृपनिसहित जैसे प्रथम बलभद्र विजय स्वर्णकुम्भ स्वामीके समीप जाय मुनि भए हुने तैसे मुनि होनेको सुव्रतमुनिके निकट गये ते महा श्रेष्ठ गुणोंके धारक हजारां मुनि माने हैं अाज्ञा जिनकी तिन जाय प्रदक्षिणा देय हाथ जोड सिर निधाय नमस्कार किया साक्षात् मुक्ति के कारण महामुनि तिनका दर्शनकर अमृतके सागरमें मग्न भए परम श्रद्धाकर मुनिराजते रामचन्द्रने जिनचन्द्रकी दीक्षा धारवेकी विनती करी-हे योगीश्वरनिके इन्द्र, मैं भव प्रपंचसे विरक्त भया तिहारा शरण ग्रहा चाहू हूं तिहारे प्रसादसे योगीश्वरनिके मार्गमें विहार करू या भांति रामने प्रार्थना करी । कैसे हैं राम ? धोये हैं समस्त रागद्वेषादिक कलक जिन्होंने तब मुनींद्र कहते भए-हेनरेंद्र, तुम या बातके योग्य ही हो, यह संसार कहा पदार्थ है यह तन कर तुम जिनधर्मरूप समुद्रका अवगाह करो,यह मार्ग अनादिसिद्ध वाधारहित अविनाशी सुखका देनहारा तुमसे बुद्धिमान ही आदरें । ऐसा मुनिने कहा तब राम ससारसे विरक्त महा प्रवीण जैसे सूर्य सुमेरुकी प्रदक्षिणा करे तैसे मुनींद्रकी प्रदक्षिणा करते भए । उपजा है महाज्ञान जिनको वैराग्यरूप वस्त्र पहिरे बांधी है कर्मोंके नाशको कमर जिन्होंने आशारूप पाश तोड स्नेहका पिंजरा दग्धकर स्त्रीरूप बंधनसे छूटमोहका मान मार हार कुंडल मुकुट केयूर कमेखलादि सर्व आभूषण डार तत्काल वस्त्र तजे, परम तत्व में लगा है मन जिनका वस्त्राभरण यू तजे ज्यों शरीर तजिए महासुकुमार अपने का तिनकर केस लोंच किए पद्मासन पर विराजे शीलके मंदिर अष्टम वलभद्र समस्त परिग्रहको तजकर ऐसे सोहते भए जैसा राहुसे रहित सूर्य सोहै पंच महावत आदरे पंचममित अंगीकार कर तीनगुप्त रूप गढमें विराजे मनोदण्ड व वनदण्ड कायदण्डके दूर करणहारे षट् कायके मित्र, सप्त भयरहित आठ कर्मों के रिपु नवधा ब्रह्मचर्यके धारक दशलक्षण धर्म धारक श्रीवत्स लक्षण कर शोभित है उरस्थल जिनका गुणभूषण सकलदूषणरहित तत्वज्ञानमें इद रामचन्द्र महा मुनि भए देवनिने पंचाश्चर्य किए सुन्दर दुन्दभी बाजे अर दोनों देव कृत्तांतवक्रका जीव पर जटायुका जीव तिन्होंने परम उत्सव किए जब पृथिवी का पति राम पृथितीको तज निकमा तव भूमिगोचरी विद्याधर सब ही राजा आश्चर्यको प्राप्त भये पर विचारते भए जो ऐमी विभूति ऐसे रत्न यह प्रताप तजकर रामदेव मुनि भए तो ओर हमारे कहा परिग्रह ? जाके लोभते घरमें तिष्ठे व्रत विना हम एते दिन योंही खोये ऐसे विचारकर अनेक राजा गृह बन्धनसे निकसे अर रागमई पाशी काट द्वषरूप वैरीको विनाश सर्व परिग्रह का त्यागकर भाई शत्रुघ्न मुनि भये पा विभीषण सुग्रीव नील नल चन्द्रनख विरावित इत्यादि अनेक राजा मुनि भए विद्याधर सर्व विद्याका त्यागकर ब्रह्मविद्याका प्राप्त भए कैयकोंको चारणऋद्धि उपजी या भांति रामके वैराग्य भए सोलह हजार कछु अधिक महीपति मुनि भये । भर सत्ताईस हजार राणी श्रीमती आर्यिकाके समीप आर्थिका भई। अथानन्तर श्रीराम गुरुकी आज्ञा लेय एकविहारी भए तजे हैं समस्त विकल्प जिन्होंने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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