Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 572
________________ एकलौनोवा पर्व समस्त कर्म महानिंद्य दुखकी वृद्धि के कारण तिनको तजकर जैनका भाषा तपकर अनेक सूर्यकी कांतिको जीत साधु शिवपुर कहिये मुक्ति तहां जाय हैं। इति श्रीरविषणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रंथ ताकी भाषावचनिकाबिङ्ग लवांकुशके पभाका वर्णन करनेवाला एकसौं आठवां पर्ण पूर्ण भया. ॥ १०८ ॥ अथानन्तर सीता पति पर पुत्रोंको तजकर कहाँ २ तप करती भई सो सुनो-कैसी है सीता ? लोकमें प्रसिद्ध है यश जिसका। जिस समय सीता मई वह श्रीमुनिसुव्रतनाथजीका समय था । वे बीसवें भगवान् महा शोभायमान भव अमके निवारण हारे जैसा अरहनाथ अर मल्लिनाथका समय तैमा मुनिसुव्रतनाथका समय उसमें श्रीसकलभूपण केवली केवलज्ञानकर लोकालोकके ज्ञाता बिहार करें हैं अनेक जीव महाव्रती अणुव्रती किये सकल अयोध्याके लोक जिन धर्ममें निपुण विधिपूर्वक गृहस्थका धर्म आराधे सकल प्रजा भगवान सफलभूषणके वचनमें श्रद्धावान्, जैसे चक्रवर्तीकी आज्ञाको पाले तैसे भगवान धर्म चक्री तिनकी भव्य जीव पालें, राम का राज्य महा धर्मका उद्योत रूप जिस समय घने लोक विवेकी साधु सेवामें तत्पर देखो जो सीता अपनी मनोग्यता कर देवांगनानिकी शोभाको जीतती हुती सो तप कर ऐसी होय गई मानो दग्य भई माधुरी लता ही है महा वैराग्य कर मण्डित अशुम भाव कर रहित स्त्री पर्याय को अति निंदती महा तप करनी भई धूरकर धूसर होय रहे हैं केश जिसके अर स्नानरहित शरीरके संस्कर रहित पसेव कर युक्त गात्र जिसमें रज आय पडे सो शरीर मलिन होय रहा है बेला तेला पक्ष उपवास अनेक उपवास कर तनु क्षीण किया दोष टारि शास्त्रोक्त पारण करे शीलवत गुणमें अनुरागिणी अध्यात्मक विचार कर अत्यंत शांत हो गया है चित्त जाका वश किये हैं इन्द्रिय जाने और नितें न बने ऐसा उग्रतप करती भई मांस पर रुधिर कर वर्जित भया है सर्व अंग जाका प्रकट नजर श्रावै है अस्थि अर नसा जाल जाके मानों काठकी पुतली ही है सूकी नदी समान भासती भई बैठ गये हैं कपोल जाके जूडा प्रमाण धरती देखती चले महा दयावंती सौम्य हे दृष्टि जाकी तपका कारण देह उसके समाधान के अर्थ विधिपूर्वक भिक्षा वृत्ति कर आहार करे। ऐसा तप किया कि शरीर और ही होयगा अपना पराया कोई न जाने जो यह सीता है इसे ऐमा तप करती देख सकल आयाँ इस ही की कथा करें इस ही की रीति देख और ह आदरै सपनिमें मुख्य भई इस भांति बासठ वर्ष तप किये अर तेतीस दिन आयुके वाकी रहे वर अनशन वाधार परम अाराधना पाराध जैसे पुष्पादिक उच्छिष्ट सायरेको तजिए तैसे शरीर को तजकर अच्युत स्वर्गमें प्रतींद्र भई । . गौतम स्वामी कहै हैं-हे श्रेणिक ! जिनधर्मका माहात्म्य देखो जो यह प्राणी स्त्री पर्यायमें उपजी थी सो तपके प्रभावसे देवोंका प्रभु होय । सीता अच्युत स्वर्गमें प्रतींद्र भई वहां मणिनि की कांति कर उद्योत किया है आकाशमें जाने ऐसे विमानमें उपजी विमान मणि. कांचनादि म. हाद्रव्यनि कर मण्डित विचित्रता धरे परम अद्भुत सुमेरुके शिखर समान ऊंचा हैं वहां परम ईश्वरता कर सम्पन्न प्रतींद्र भया । हजारों देवांगना तिनके नेत्रोंका आश्रय जैसा ताराओं कर मण्डित चन्द्रमा सोहै तैसा सोहता भया अर भगवानकी पूजा करता भया मध्य लोकमें पाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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