Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 578
________________ एकसtreat प ५६६ लही र कैटभका जीव कृष्णकी जामवन्ती राणीके शंभुकुमार नामा पुत्र होय परम धामकों प्राप्त भया । यह मधुका व्याख्यान तुझे कहा । हे श्रेणिक, बुद्धिवन्तोंके मनको प्रिय ऐसे लक्ष्मणके अष्ट पुत्र महा धीर वीर तिनका चरित्र पापोंका नाश करणहारा चित्त लगाय सुनो। इति श्रीरविपणाचार्यविरचित महापद्मपुराण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा वचनिका विषै राजा मधुका वैराग्य वर्णन करनेवाला एकसौनौवां पव पर्ण भया ।। ५०६ ॥ अथानन्तर कांचनस्थान नामा नगर वहां राजा कांचनरथ उसकी राणी शतहृदा उसके पुत्री दोय अति रूपवन्ती रूपके गर्व कर महा गर्वित तिनके स्वयंवर के अर्थ अनेक राजा भूचर खेर तिनके पुत्र कन्या के पिताने पत्र लिख दून भेज शीघ्र बुलाये सो दूत प्रथम ही अयोध्या पठाया पर पत्र में लिखा मेरी पुत्रीयोंका स्वयंवर है सो आप कृपाकर कुमारोंको शीघ्र पठायो । तब राम लक्ष्मणने प्रसन्न होय परम ऋद्धियुक्त सर्व सुन पठाए दोनों भाईयोंके सबल कुमार लव अंकुशको असर कर परस्पर महा प्रेमके भरे काचनस्थानपुरको चले सैकडों विमान में बैठे अनेक विद्याधर लार, रूपकर लक्ष्मीकर देवनि सारिखे श्राकाशके मार्ग गमन करते भये सो बडी सेना सहित आकाशसे पृथिवी को देखते जावें कांचनस्थानपुर पहुंचे वहां दोनों श्रेणियोंके विद्याधर राजकुमार आये थे सो यथायोग्य तिष्ठे जैसे इन्द्रकी समामें नानाप्रकारके आभूषण पहिरे देव तिष्ठे अर नन्दनवनमें देव नानाप्रकारकी चेष्टा करें तैमी चेष्टा करते भये श्रर वे दोनों कन्या मंदाकिनी अर चंद्रवक्त्रा मंगल स्नानकर सर्व श्राभूषण पहिरे निज वाससे रथ चढी निकसी मानों साक्षात लक्ष्मी घर लजा ही हैं महा गुणोंकर पूर्ण तिनके खोजा लार था सो राजकुमारोंके देश कुल संपत्ति गुण नामा चेष्टा सच कहता भया । अर कही ये आए हैं तिनमें कई बानरध्वज कई सिंहध्वज कई वृषभध्वज कई गजध्वज इत्यादि अनेक भांतिकी ध्वजा कोंधरे महा पराक्रमी हैं इनमें इच्छा होय उसे वरों तब यह सबनिकों देखती भई पर यह सब राजकुमार उनको देख संदेह की तुलामें आरूढ भए कि यह रूप गर्वित हैं न जानिये कौनको बरें ऐसी रूपवन्ती हम देखी नहीं मानों यह दोनों समस्त देवियोंका रूप एकत्र कर बनाई हैं यह कामकी पताका लोकोंकों उन्मादका कारण इस भांति सब राजकुमार अपने अपने मनमें अभिलाषा रूप भए दोनों उत्तम कन्या लवण अंकुशको देख कामवाण कर बेधी गई उनमें मन्दाकिनी नामा जो कन्या उसने लवण के कंठमें वरमाला डारी, अर दूजी कन्या चंद्रवक्त्राचे अंकुशके क ंठमें वरमाला डारी तब समस्त राजकुमारोंके मनरूप पक्षी तनुरूप पिंजरेसे उग र जे उत्तम जन तिन्होंने प्रशंसा करी किइन दोनों कन्यावोंने रामके दोनों पुत्र वरे सोनीके करी, ये कन्या इनही योग्य हैं इस भांति सज्जनोंके मुख से बाणी निकसी जे भले पुरुष हैं तिनका चित्त योग्य सम्बधसे आनन्दको प्राप्त होय । अथानन्तर लक्ष्मणकी विशिल्यादि माठ पटराणी तिनके पुत्र आठ महा सुन्दर उदार चित्त शूरवीर पृथ्वी में प्रसिद्ध इन्द्र समान सो अपने अढाई भाईयों सहित महा प्रीतियुक्त तिष्ठते थे जैसे ताराओं में ग्रह तिष्ठे सो आठ कुमारन विना और सब भाई रामके पुत्रनि पर क्रोधित भए जो हम नारायण के पुत्र कांतिधारी कलाधारी नवयोवन लक्ष्मी वान बलवान सेनावान कौन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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