Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 573
________________ ५६६ तीर्थोकी यात्रा साधुओं की सेवा करता भया पर तीर्थकरोंके समोशरणमें गणधरोके मुखसे धर्म श्रवण करता भया, यह कथा सुन गौतमस्वामीसे राजा श्रेणिकने पूछी--हे प्रभो, सीताका जीव सोलहवे स्वर्ग प्रतींद्र भया उस समय वहां इन्द्र कौन था ? तब गौतम स्वामीने कही उस समय वहां राजा मधुका जीव इन्द्र था । उसके निकट यह प्रतींद्र भया सो वह मधुका जीव नेमिनाथ स्वामीके समय अच्युतेन्द्र पदसे चयकर बासुदेवकी रुक्मणी राणी ताके प्रद्युम्न पुत्र भया अर उसका भाई कैटभ जांबुवतीके शंभु नामा पुत्र भया, तब श्रेणिकने गौतम स्वामीसे विनती करी हे प्रभो, मैं तुम्हारे वचन रूप अमृत पीवता २ तृप्त नाहीं जैसे लोभी जीव धनसे तृप्त नाही इस. लिये मुझे मधुका अर उसके भाई कैटभ का चरित्र कहो । तब गणधर कहते भये-एक मगध नामा देश सर्व धान्य कर पूर्ण जहां चारो वर्ण हर्षसे बौं धर्म अर्थ काम मोक्षके साधन अनेक पुरुष पाइये अर सुन्दर चैत्यालय अर अनेक नगर ग्राम तिनकर वह देश शोभित जहां नदियोंके तट गिरियों शिखर वनमें ठौर ठौर साधुओं के संघ विराजे हैं राजा नित्योदित राज्य करे उस देशमें एक शालि नामा ग्राम नगर सारिखा शोभित वहां एक ब्राह्मण सोमदेव उसके स्त्री अग्निला पुत्र अग्निभूत वायुभून सो वे दोनों भाई लौकिक शास्त्रमें प्रवीणा अर पठन पाठन दान प्रतिग्रहमें निपुण पर कुलके तथा विद्याके गर्व कर गर्वित मनमें ऐसा जाने, हमसे अधिक कोई नहीं जिन थर्मत परांगमुख रोग समान इन्द्रीनिके भोग तिन ही को भले जाने । एक दिन स्वामी नन्दीवर्थन अनेक मुनिनि सहित वनमें प्राय बिराजे, बडे आचार्य अबधिज्ञान कर समस्त मूर्तिक पदार्थनिको जाने सो मुनिनिका आगमन सुन ग्रामके लोक सब दर्शनको आए हुते अर अग्निभूत वायुभूतने काहसे पूछी जो यह लोक कहां जाय है ? तब वाने कही नन्दीवर्धन मुनि पाए हैं तिनके दर्शनको जाय हैं तब सुन कर दोऊ भाई क्रोधायमान भए जो हम वादकर सा. धुनिको जीतेंगे तब इनको माता पिताने मना किया जो तुम साधुनितें बाद न करो तथापि इन्होंने न मानी बादको गये तब इनको प्राचार्य के निकट जाते देख एक सात्विक नामा मुनि अवधि ज्ञानी इनको पूछते भए-तुम कहां जावो हो ? सब इन्होंने कही तुममें श्रेष्ठ तुम्हारा गुरु हैं, उसको वाद कर जीतवे जाय हैं, तब सात्विक सुनिने कही हमसे चर्चा करो। तब यह क्रोधकर मुनिके समीप बैठे अर कही तू कहांसे आया है । तब मुनिने कहा तुम कहांत आए ? तब वह क्रोध कर कहते भए यह तें पूछी ? हम मामते आए है कोई शास्त्रकी चर्चा करहु । तब मुनिने कही यह तो हम जाने हैं तुम शालिग्रामसे आए हो पर तिहारे बापका नाम सोमदेव माताका नाम श्र. ग्निला अर तिहारे नाम अग्निभूत वायुभूत तुम विप्रकुल हो सो यह तो प्रकट है परन्तु तुमसे यहपूछे हैं अनादिकालके भव वनमें भ्रमण करो हो सो या जन्ममें कौन जन्मसे आए हो? तब इनने कही यह जन्मांतरकी वात हमको पूछी सो और कोई जाने है ? तब मुनिने कही हम जाने हैं, तुम सुनो पूर्व भवमें तुम दोऊ भाई या ग्रामके वनमें परस्पर स्नेह के धारक स्याल हुते विरूपमुख अर याही ग्राममें एक बहुत दिनका बासी पामर नामा पितहड ब्राह्मण सो वह खेतमें सूर्य अस्त समय सुधाकर पीडित नाडी आदि उपकरण तजकर आया अर अंजनगिरि तुन्य मेष माला उठी, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616