Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 575
________________ पद्म-पराण साधैं, तातें ये साधु कहिये अर पंच प्राचारको आप आचरें औरनिको आचरावै तात आचार्य कहिये अर आगार कहिये घर ताके त्यागी तातें अनगार कहिये शुद्ध भिक्षाके ग्राहक तात भितुक कहिये, अति कायक्लेश करें अशुभकर्मके त्यागी उज्ज्वल क्रियाके कर्ता तप करते खेद न मानें तात श्रमण कहिये आत्मम्वरूप प्रत्यक्ष अनुभवै तातें मुनि कहिये रागादिक रोगोंके हरिवेका यत्न करें तात यति कहिये या भांति लोकनिने साधुकी स्तुति करी अर इन दोनों भाईनिकी निन्दा करी तब यह मानरहित प्रभारहित विलखे होय घर गये रात्रिको पापी मुनिके मारिवेको श्राए अर वे सात्विक मुनि अपरिग्रही संघको तज अकेले मसान भूमिमें अस्थ्यादिकसे दूर एकांत पवित्र भूमिमें विराजे थे कैसी हैं वह भूमि जहां रीछ व्याघ्र आदि दुष्ट जीवोंका नाद होय रहा है अर राक्षस भूत पिशाचोंकर भरा हैं नागोंका निवास हैं अर अधिकाररूप भयंकर तहां शुद्ध शिला जीव जंतुरहित उसपर कायोसगं धर खडे थे सो उन पापियोंने देखे दोनों भाई खड्ग काढ क्रोधायमान होय कहते भए जब तो तोहि लोकोंने बचाया अब कौन बचानेगा हम पंडित पृथिवीमें श्रेष्ठ प्रत्यक्ष देवता तू निर्लज्ज हमको स्याल कहे यह शब्द कह दोनों अत्यंत प्रचंड होठ इसते लाल नेत्र दयारहित मुनिके मारिवेको उद्यमी भए तम वनका रक्षक यक्ष उसने देखे मनमें चिंतवता भया-देखो ऐसे निर्दोष साधु ध्यानी कायासे निर्ममत्व तिनके मारिवको उद्यमी भए तब यक्षने यह दोनों भाई कीले सो हलचल सके नाही, दोनों पसवारे खडे प्रभात भया सकल लोक पाए देखें तो यह दोनों मुनिके पसबारे कीले खडे हैं अर इनके हाथमें नंगी तलवार है तब इनको सब लोक धिक्कार धिक्कार कहते भये यह दुराचारी पापी अन्याई ऐसा कर्म करनेको उद्यमी भए इन समान अर पापी नाही और यह दोनों चित्तमें चितवते भए जो यह धर्मका प्रभाव हैं हम पापी थे सो वलात्कार कीले स्थावर समकर डारे अब या अवस्थासे जीवते बचें तो श्रावकके व्रत आदरें अर उस ही समय इनके माता पिता आये बारम्बार मुनिको प्रणामकर बिनती करते भए-हे देव ! यह कुपूत पुत्र हैं इन्होने बहुत बुरी करी आप दयालु हो जीवदान देवो साधु बोले हमारे काहसे कोप नहीं हमारे सब मित्र बांधव हैं तब यक्ष लाल नेत्रकर अति गुंजारसे बोला अर सबोंके समीप सर्व वृत्तांत कहा कि जो प्राणी साधुवोंकी निन्दा करें सो अनर्थको प्राप्त होवें जैसे निर्मल कांचमें वांका मुखकर निरखे तो बांका ही दीखे तैसे जो साधुवोंको जैसा भावकर देखे तैसा ही फल पावै जो मुनियों की हास्य करै सो बहुत दिन रुदन करें और कठोर वचन कहै सो क्लेश भोगवै अर मुनिका बध करै तो अनेक कुमरण पावै द्वष करे सो उपार्जे भव २ दुख भोगवै अर जैसा करै तैसा फल पावै यद कहे है हे विप्र ! तेरे पुत्रोंके दोषकर मैं कीले हैं विद्याके मानकर गर्वित मायाचारी दुराचारी संयमियों के घातक हैं ऐसे वचन यक्षने कहे तब सोमदेव विप्र हाथ जोड साधुकी स्तुति करता भया अर रुदन करता भया आपको निंदता छाती कूटता ऊर्ध्व भुजाकर स्त्रीसहित विलाप करता भया तब मुनि परम दयालु यक्षको कहते भए-हे सुन्दर ! हे कमल नेत्र ! यह बालवुद्धि हैं इनका अपराध तुम क्षमाकरो तुम जिनशासनके सेवक हो सदा जिनशासनकी प्रभावना करो हो वाते. मेरे कहेसे इनको क्षमा करो तब यक्षने कही प्राप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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