Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 558
________________ ___एकरनेछ हवा पर्श कृपमें पडा उसका निकसना अति कठिन है तैसे स्नेहरूप फांसी कर बंधा संसार रूप अंधकूपमें पडा अज्ञानी जीव उसका निकसना अति कठिन है कोई निकट भव्य जिनवाणीरूप रस्से को गहे अर श्रीगुरु निकासनेवाले होंय तो निकसें अर अभव्य जीव जैनेन्द्री आज्ञारूप अनि दुर्लभ आनन्दका कारण जो आत्मज्ञान उसे पायवे समर्थ नहीं जिनराजका निश्चय मार्ग निकटभव्य ही पावै अर अभव्य सदा को कर कलंकी भए अनिल शरूप संस रचक्रमें भ्रमे हैं ! हे श्रेणिक ! यह वचन श्रीभगवान मकलभूषण केवलीने व हे तब श्रीरामचन्द्र हाथ जोड शीश नवाय व हते भए हे भगवान ! मैं कौन उपाय कर भव भ्रमण से छूटू मैं सकल राणी अर पृथ्वीका राज्य तजये समर्थ हूं परन्तु भाई लक्ष्ममका स्नेह तजवे समर्थ नहीं, स्नेह समुद्र की तरंगोंमें डुबूं हूं श्राप धर्मोपदेश रूप हस्तालवम्बन कर काढो । हे करुणानिधान ! मेरी रक्षा करो, तब भगवान कहते भये- हे राम ! शोक न कर तू बलदेव है कैयक दिन वासुदेव सहित इन्द्रकी न्याई इस पृथिवीका राज्य कर जिनेश्वरका व्रत धर केवलज्ञान पावेगा, ये केवलीके वचन सुन श्रीरामचन्द्र हर्पकर रोमां. चित भए नयन कमल फूल गए बदन कमल विकपित भया पाम धीर्य युक्त होते भए अर राम को केवलीके मुखसे चरम शरीरी जान सुर नरअसुर सब ही प्रशंसा कर अति प्रीति करते भए । इति श्रीरविणेणाचार्यविरचित महापद्मपुगण संस्कृत ग्रन्थ, ताकी भाषा बनिकात्रि गमका केत्रलाके मुख धर्मश्रवण वर्णन करनेवाला एकसौ पांचवां पर्ण पूर्ण भया ।। १०५ ।। अथानन्तर विद्याधरनिमें श्रेष्ठ राजा विभीषण रावणका भाई सुन्दर शरीरका धारक रामकी भक्ति ही है श्राभूषण जिसके सो दोनों कर जोड प्रणाम कर केवलीको पूछता भया, हे देवाधिदेव श्रीरामचन्द्रने पूर्व भवमें क्या सुकृत किया जिसकर ऐपी महिमा पाई अर इनकी स्त्री सीता दण्डक वनसे कौन प्रसंगकर रावण हर लेगया धर्म अर्थ काम मोक्ष चारों पुरुषार्थका वेत्ता अनेक शास्त्रका पाठी कृत्य अकृत्यको जाने धर्म अधर्मको पिछाने प्रधान गुण सम्पन्न सो काहे से मोहके वश होय परस्त्रीकी अभिलाषा रूप अग्निमें पतंगके भावको प्राप्त भया पर लक्ष्मणने उसे संग्राममें हता रावण ऐसा बलवान विद्याधरनिका महेश्वर अनेक अद्भुत कार्योका करणहारा सो कैसे ऐसे मरणको प्राप्त भया ? तब कंवली अनेक जन्मकी कथा विभीषण को कहते भए-हे लकेश्वर ! राम लक्ष्मण दोनों अनेक भवके भाई हैं अर रावणके जीवसे लक्ष्मणके जीवका बहुत भवसे वैर है सो सुन-जम्बूद्वीपके भरत क्षेत्र में एक नगर वहां नयदत्त नामा वणिक अल्प धनका धनी उसकी सुनन्दा स्त्री उसके धनदत्त नामा पुत्र सो रामका जीव अर दूजा बसुदच सो लक्ष्मणका जीव अर एक यज्ञवलि नामा विप्र बसुदत्तका मित्र सी तेरा जीव अर उस ही नगरमें एक और वणिक सागरदत्त जिसके स्त्री रत्नप्रभा पुत्री गुणवती सो सीताका जीव भर गुणवतीका छोटा भाई जिसका नाम गुणवान सो भामण्डलका जीव अर गुणवती रूप यौवन कला कांति लावण्यताकर मण्डित सो पिताका अभिप्राय जान धनदत्से बहिनकी सगाई गुणवानने करी अर उस ही नगरमें एक महा धनवान बणिक श्रीकांत सो रावणका जीव जो निरंतर गुणवतीके परणवेकी अभिलाषा राखे अर गुणवतीके रूप कर हरा गया हैं चित्त जाका सो गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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