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नौवां पर्व तापछि सना दोडन लगी तब कुम्भकर्ण विभीपणने यह विचारकर मनै करी कि खरदूषण पकड़ा नहीं जायगा अर मारणा योग्य नहीं । बहुरि रावण आए तब यह वार्ता सुनकर अति क्रोध किया यानि मार्गके खेदसे शरीरपर पसेब आया हुता तथापि तत्काल सरदूषण पर जाने को उद्यमी भए । कैगा है रावण ? महामानी है, एक खड्गहीका सहाय लिया अर सेना भी लार न लीली । यह विचारा कि जो महावीर्यवान पर क्रमी हे तिनके एक खड्गहीका सहारा है। तब मन्दोदरीने हाथ जोड़ निकर -'हे प्रभु ! आप प्रकट लौकिक स्थितिके ज्ञाता हो, अपने घरी इन्धा और को देनी अर औरांकी आप लेनी इन कन्याओं की उत्पत्ति ऐसी ही है खरदूषण चौदह हजार विद्याधरोंका स्वामी है, जो द्यावर कभी सुने पीछे न हटें, बड़े वलवान हैं कर इस खरदूषनको अनेक सहस्रविद्या सिद्ध हैं मनागवंत हे अप समान शूरवीर है यह वार्ता लोकोंसे क्या आपने नहीं सुनी है, आप पर उसके भयानक युद्ध प्रवरते तब भी हार जीतका सन्देह ही है और वह कन्या हर लेगया है तब हरणेो कारण बह कन्या दक्षित भई है मोरकू जो न देने पावे, सो खरदूषणके मारनेसे वह विधवा होय हे अर सूर्यरजको मुक्त गए पीछे चन्द्रोदर विद्याधर पाताल लंका में थाने हुदा उसे काट कर यह खरदूषण तुम्हारी बहिन सहित पाताललंका में तिष्ठे है तुम्हारा सम्न्वी है।' तर रावण बोले हे प्रिये मैं युद्धसे कभी नही डरू परन्तु तुम्हारे वचन नहीं उलंघने अर बहिन विधया नहीं करणी सो हमने क्षमा करी तब मंदोदरी प्रसन्न भई।
अथानन्तर कर्मके नियोगसे चन्द्रोदर विद्याधर काला प्राप्त भया तब ताकी स्त्री अनुराधा गर्मिणी विचारी भयानक बनने हिरणीकी नाई भ्रमै सो मणिकांत पर्वतपर सुन्दर पुत्र जना । शिला ऊपर पुत्रका जन्म भया, शिला कोमल पला अर पुष्पोंके समूहसे संयुक्त है, अनुक्रमसे बालक वृद्धिको प्राप्त भया । यह वनवामिनी भाता उदासाचा पुत्र को पालै जब यह पुत्र गर्भ में आया तब हीसे इनके माता पिताको वैरियोंस विराधना उपजी तार्ते इसका नाम विराधित धरा । यह विराधित राजसम्पदावर्जित जहां २ राजाओंके पास जाय वहां वहां इसका
आदर न होय सो जैसे सिरका केश स्थानकसे छूटा आदर न पावै तैसे जो निज स्थानसे रहित होय उसका सन्मान कहांत होय सो यह राजाका पुत्र खरदूषणको जीतिचे समर्थ नहीं सो चित्तविष खरदूषणका उपाय चिंतवता हुआ सावधान रहै अर अनेक देशों में भ्रमण करै, पट् कुलाचलपर अर सुमेरु पर्वतपर तथा रमणीक बनोंमें जो अतिशय स्थानक हैं जहां देवोंका आगमन है तहां यह विहार करै अर संग्रानमें योद्धा लड़े तिनके चरित्र आकाशमें देशों के साथ देखै, संग्राम गज अश्व स्थादिक कर पूर्ण है अर ध्वजा छत्रादिककर शोभित है या भांति विराधित काल क्षेप करै अर लंकाविषे रावर इंद्रकी नाई सुखसे तिष्ठे।
___ अथानन्तर सूर्यरजका पुत्र बाली रावणकी आज्ञासे विमुख भया । कैसा है बाली ? अद्भुत कमांकी करणहारी विद्यासे मण्डित है अर महाबली है तब रावणने बालीपै दूत भेजा । सो महा
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