________________
पद्म-पुराण हीतें यह प्रतिज्ञा करी हुती जो मैं जिनेन्द्र मुनींद्र जिनशासन सिवाय किसीको भी प्रणाम न करू सो यह सब उस सामर्थ्यका फल है । अहो धन्य है निश्चय तिहारा अर धन्य यह तपका बल । हे भगवान् तुम योग शक्तिसे त्रैलोक्यको अन्यथा करनेको समर्थ हो परन्तु उत्तम क्षना धर्मके योगसे सम्पै दयालु हो, किसीपर क्रोध नहीं । हे प्रभो! जैसा तुपकर पूर्ण मुनिको विना ही यत्न परमसामर्थ्य होय है। तैमी इन्द्रादिकके नहीं धन्य गुण तुम्हारे, धन्य रूप तिहारा, धन्य कांति तिहारी, धन्य श्राचर्यकारी बल तिहरा, अद्भुत दीप्ति विहारी, अद्भुत शील, अद्भुत तप त्रैलोक्यमें जे अद्भुत परमाणु हैं तिनकरि सुकृतका आधार तिहारा शरीर बना है, जन्महीतें महाबली सर्व सामर्थके धरनहारं तुम नव योवनमें जगत्की मायाको तज कर परम शान्त भावरूप जो अरहंतकी दीक्षा ताहि प्राप्त भए हो सो यह अद्भुत कार्य तुम सारिषे सत्पुरुषोंकर ही वन है। मुझ पापीने तुम सारिखे सत्पुरुषों से अविनय किया सो महा पापका बन्धकिया । धिक्कार मेरे मन वचन कायको, मैं पापी मुनिद्रोहमें प्रवरता, जिनमन्दिरोंका अविनय भया, आप सारिखे पुरुषरत्न अर मुझ मारिखे दुर्बुद्रि सो सुमेरु अर सरसोंकामा अन्तर है मुझ मरतेको आपने आज प्राण दिये, आप दयालु हम सारिखे दुजा तिन ऊपर क्षमा करो इस समान और क्या, मैं जिन शासनको श्ररण करूं हूं. जानूह, देहूं जो यह संयार अमार है अस्थिर है दुःख नाव है तथापि मैं पापी विषयनसे वैराग्यको नहीं प्राप्त भया, धन्य हैं वे पुण्यवान मापुरुष अल्प संपारी मोजके पात्र जे तरुण अवस्थाहीमें विषयों को तजार मोतका मार्ग मुनिब्रत आचरै हैं या भांति मुनिकी स्तुतिकर तीन प्रदक्षिणा देय नमस्कारकर अपनी निंदाकर बहुत लज्जावान होय मुनिके समीप जे जिनमन्दिर हुते तहां बदनाको प्रवेश किया, चंद्रहास खड्ग को पृथ्वीपर रखकर अपनी राणियोंकर मंडित जिनवरका अर्चन करता भया । भुजामेंसे नस रूप तांत काढकर वीण समान बजाता भया । भक्ति में पूर्ण है भाव जाका स्तुतिकर जिनेंद्रके गुणानुवाद गावना भया। हे देवाधिदेव ! लो-लोकके देखनेहारे नमस्कार हो तुमको। कैसे हो ? लोकको रलंघे असा है तेज तिहर. । हे कृतार्थ महात्मा नमस्कार हो । कैसे हो ? तीन लोक कर करी है पूजा जिनकी, नष्ट किया है मोहका वेग जिन्होंने, वचनसे अगोचर गुणोंके समूहके धरनेहारे, महा ऐवर्यकर मण्डित मोक्षमानके उपदेशक सुखकी उत्कृष्टतामें पूर्ण, समस्त कुमार्गसे दूर, जीवनको मुक्ति अर भुनिक कारण, महाकल्याणके मूल, सर्व कर्मके साक्षी, ध्यान कर भग्म किए हैं पाप जिन्होंने, जन्म मरणके दूर करनेहारे, समस्तके गुरु आपके कोई गुरु नहीं, आप किसीको नव नहीं अर सबकर नमस्कार करने योग्य आदि अन्तरहित समस्त परमाई के जाननेहारे, आपको केवली विना अन्य न जान सके, सर्व गगादिक उपाधिसे शून, सर्वके उदेशक, द्रव्यार्थिक नयसे द्रव्य गुणका भेद, किसी एक नयसे द्रव्य गुणक: अमेद, ऐसा अनेकांत दिखावनेहारे, जिनेश्वर सर्व एकरूप चिद्रप अरूप जीवनको मुक्तिके देनेहारे ऐसे जो तुम तिनको हमारा बारम्बार नमस्कार हो। . श्रीऋषभ अजित सम्भव अभिनन्दन सुमति पद्मप्रभ सुपार्य चन्द्रप्रभ पुष्पदंत शीतल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org