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आठवा पव रंक हमसे युद्ध कर सकै, जो मनुष्य उसने वैतरणी आदि क्लेशके सागरने डार राखे हैं, मैं आज ही उनको छुड़ाऊंगा अर उस पापीने नरक बना राखा है उसे विध्वंस करूंगा। देखो दुर्जनकी दुष्टता ! जीवो को ऐसे संताप दे है । यह विचार कर आप ही चले । प्रहस्त सेन पनि आदि अनेक राजा बड़ी सेनासे आगे दौड़े । नाना प्रकारके बाहनोंपर चढ़े शस्त्रोंके तेजसे अाकाशमें उद्योत करते अनेक बादित्रों के नाद होते महा उत्साहसे चने, विद्याधरोंके अधिपति किहकूपुरके समीप गए। सों दूरसे नगर क घरों की शोभा देख कर आश्चर्यको प्राप्त भए, किहकू पुरकी दक्षिण दिशामें यम विद्याधरका बनाया हुवा नरक देखा जहां एक ऊंचा खाडा खोदं राखा है अर नरककी नकल बनाय राखो है। अनेक नरोंके समूह नरकमें राखे हैं। तब रावणने उस नरकके रखवारे जे यमके फिकर हुने कूटकर काढ दिये अर सर्व प्राणी सूरज रक्षरज अदि दुःख सागरसे निकासे । कैसे हैं रावण ? दैनन बंधु दुष्टों को दंड देनहारे हैं। वह सर्व नरक स्थान ही दूर किया । यह वृत्तांत पर चक्र के प्रावनेका सुन यम बड़े आडंबरसे सर्व सेना सहित युद्ध करनेको अाया। मानो समुद्र ही क्षोभको प्राप्त भया । पर्वत सारिखे अनेक गन मदधारा भरते भयानक शब्द करते, अनेक आभूषणयुक्त, उनपर महा योधा चढ़े अर तुरंग पवन सारिखे चंचल जिन की पूछ चमर समान हालती अनक आभूषण पहिरे, उनकी पीठ पर महाबाह सुभट चढ़े पर सूर्यके रथ समान अनेक वजा घोंकी पंक्ति शाभारमन, जिनमें बड़े बड़े सामंत वगतर पहर, शस्त्रोके समूह धारेवडे, इन्यादि महा सेना सहित यन अाया।
तब विभीषणने यमकी सर्व सेना अपने बाणोंसे हटाई। केसे हैं विभीषण ! रणविर्षे प्रवीण रथ पर आरूढ हैं। विभीपणके बाणोंसे यम किर पुकारते हुये भागे । यम किरोंके भागने अर नारकियोंके छुडानेसे महा कर होकर विभोप पर रथ चहा थनुष को धारे आया। ऊंची है ध्वाजा जाकी, काले सर्प समान कुटिल केश जाके, भ्राटी चढाए लाल हैं नेत्र जाके, जगत रूप ईधनके भस्म करणको अग्नि समान आप तुल्य जो बड़े २ सामंत उन कर मंडित युद्ध करणेको अपने तेजसे श्राकाशमें उद्योत करता हुवा अाया। तब रावण यमको देख विभीपणको निवार थाप रण संग्राम उद्यमी भए। यमके प्रतापसे सर्व राक्षस सेना भयभीत होय रावणके पीछे प्राय गई । कैसा है यम ? अनेक आडम्बर धारे है, भयानक है मुख जाका, रावण भी रथ पर आरूढ होकर यमके सन्मुख भए। अपने बाणों के समूह यम पर चलाये। इन दोनों के बाणोंसे आकाश आच्छ दित भया, कैसे हैं बाण ? भयानक है शब्द जिनका, जैसे मेवोंके समूहसे आकाश व्याप्त होय, तैसें बाणोंसे आच्छादित हो गया। रावण ने यमके सारथीको प्रहार किया सो सारथी भूमिमें पड़ा पर एक पाणं यमको लगाया सो यम भी रथसे गिर पड़ा। तब यम रावणको महाबलवान देख अक्षिण दिशाका दिग्पालपणा छोड़ भागा। सारे कुटुम्बको लेकर परिजन पुरजन सहित रथनूपुरमें गया। इंद्रसे नमस्कार कर बानती करतो भया । "हे देव! आप कृपा करो, अथवा कोप करो, आजीवका राखो तथा हरो। तुम्हारी जो मांछा होय सो करो। यह यमपणा मुझसे न होय मालीक भाई सुमालीका पोता दशान महा यांधा, जिसने
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