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आठवां पर्व
दरीको लेय महल पर चढ़े। सातवें खणमें गए वहां रावणकी बहिन चन्द्रनखा बैठी हुती चन्द्रनखा मानों साक्षात् वन देवी ही मूर्तिवंती है । चन्द्रनखाने राजा मयको र उसकी पुत्री मंदोदरीको देखकर बहुत आदर किया सो बड़े कुलके बालकोंके यह लक्षण ही हैं । बहुत विनयसंयुक्त इनके निकट बैठी । तब राजामय चन्द्रनखाको पूछते भए " हे पुत्री ! तू कौन है ? किस कारण वनमें अकेली बसे है ?" तत्र चन्द्रनखा बहुत विनयसे बोली- 'मेरा भाई रावण है, बेला करके उसने चन्द्रहाम खड्गको सिद्ध किया है अर अब मुझे खड्गकी रक्षा सोंप सुमेरुपर्वत के चैत्यालयों की वंदनाको गये हैं। मैं भगवान चन्द्रप्रभुके चैत्यालय में तिष्ट्रं हूं तुम बड़े हितू सम्बंधी हो जो तुम रावण से मिलने आए हो तो क्षणइक यहां बिराजो ।" इस भांति इनके बात होय ही रही थी कि रावण आकाश मार्गसे आए। तेजका समूह नजर आया। तब चन्द्रनखाने कही 'अपने तेज मे सूर्यके तेजको हरता हुआ यह रावण आया है।' रावणको देख राजामय बहुत आदरसे खड़े हुए अर रावण से मिले अर सिंहासनपर विराजे तब राजामय के मन्त्री मारीच तथा बज्रमध्य अर नमस्तडित् उग्रनक्र मरुध्वज मेधावी सारण शुक्र ये सब ही रावणको देख बहुत प्रसन्न भए । 'हे दैत्यंश ! आपकी बुद्धि अति प्रवीण हैं, जो मनुष्योंमें महा पदार्थ था सो तुम्हारे मनमें बसा' इस भांति मयसे कहकर ये मय के मंत्री रावणसे कहते भये - हे 'द ग्रीव महाभाग्य अपिका अद्भुत रूप अर महा पराक्रम है और तुम अति विनयन अतिशयक धारो अनुपम वस्तु हो । यह राजा मय दैत्योंका अधिपति दक्षिण श्र ेणी में असुरसंगंत नामा नगरका राजा है, पृथ्वीविषै प्रसिद्ध हैं । हे कुमार; तुम्हारे निर्मल गुणों अनुरागी हुआ आया है।'
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तब रावणने इनका बहुत शिष्टाचार किया अर पाहुण गति दरी अर बहुत मिष्ट वचन कहे । सो यह बड़े पुरुषोंके घरकी रीति ही है कि जो अपने द्वार वे उसका आदर करें। रावणने मयके मंत्रियोंसे कही कि दैत्यनाथ ने मुझे अपना जान बड़ा अनुग्रह किया है । तब सय नेकी कर ! तुम यही योग्य हैं जो तुम सारिखे साधु पुरुष हैं उनको सज्जनता ही मुख्य है बहुरि रावण श्रीजिनेश्वरदेव की पूजा करने को जिन मंदिर में गए। राजा मयको अर इसके मंत्रियोंको भी ले गये। रावणने बहुत भावसे पूजा करी, खूप भग नहे श्रागे स्तोत्र पढ़े, बारम्बार हाथ जोड़ नमस्कार किए, रोमांच दोय अए, अष्टांग दण्डवतकर जिन मंदिरसे बाहिर आए । कैसे हैं? अधिक उदय है जिनका अर महा सुन्दर है चेष्टा जिनकी चूड़ामणिसे शोभे हैं शिर जिनका नै यालयोंसे बाहिर आय राजा मय सहित आप सिंहासन पर विराजे । राजासे dard विद्याधरोका वाढ पूछी मन्दोदरीकी ओर दृष्टि गई तो देखकर मन दोहित भया । कैसी है मन्दोदरी १ सुन्दर लक्षणोंकर पूर्ण सौभाग्यरूप रत्नों की भूमि, कमल समान हैं चरण जिसके, स्निग्ध है तनु जिसका लोण्यतारूपी जलकी प्रवाह ही हैं, महा लज्जा के योगसे नीची है दृष्टि जिसकी, सुके कुंभ तुल्य है स्तन जाके, पुन अधिक है सुगंधता र सुकुमारता जिलकी, अर कोमल हैं देऊ भुजलता जिसकी अर शंखके कठ समान है ग्रांदा (बन्दन) जिसकी, पूर्ण नाके चंद्रमा समान हैं सुख जाका, शुक्र (घोता ) हूं तैं ते सुन्दर हैं नासिका जाकी, मानो दोऊ नेत्रों
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