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पभ-पुराण
ऐसा कहती भई कि मेरा इस नसे संयोग न होय तो मैं मृत्यु प्राप्त होऊगी अ धम नरसे सम्बन्ध न करूंगी तब मैंने उसको धीर्य बन्धाया अर असी प्रतिज्ञा करी-जहां तेरी रुमि है मैं उसे न लाऊ तो अग्निमें प्रवेश करूंगी। अति शोकवंत देख मैंने यह प्रतिज्ञा करी । उसके गुणसे मेरा चिच हरा गया है सो पुग यक प्रभावसे आप मिले, मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण भई ऐसा कह सूर्योदय नगरमें ले गई। राजा शक्रधनो व्योग कड़ा यो राजाने अपनी पुत्रीका इनसे पाणिग्रहण कराया अर वेगवतीका बहुत यश माना । इनका विवाह देख परिजन अर पुरजन हर्षित भये । कैसे हैं ये बर कन्या ? अद्भुत रूपके निधान हैं इनके विवाहकी वार्ता सुन कन्याके मामा के पुत्र गंगाधर महीधर कोधायमान भये जो कन्याने हमको तजकर भूमिगोचरी वरा। यह विचारकर युद्धको उद्यमी भए । तब राजा शक्रनु रिषेणसे कहता जया कि मैं युद्ध में जाऊ.
आप नगरमें तिष्ठो । वे दुराचारी विद्य.धर युद्ध करने को आए हैं तब रिपेण समुरसे कहते भये कि जो पराए कार्यको उद्यमी होय वह अपने कार्यको कैसे उद्यम न करे। ताने हे पूज्य ! मोहि
आज्ञा करो मैं युद्ध करूंगा। तब ससुग्ने अनेक प्रकार निवारण किया पर पहन रहे । नाना प्रकार हथियारों से पूर्ण ऐसे रथपर चढ़े जिसमें पवनगामी अश्व जुरे अर भूयवार्य सारथी हांके इनके पीछे बड़े बड़े विद्याथर चले । कई हाथियोंपर चढ़े, कई अश्वोपर चढ़े, कई स्थोंपर चदे, परस्पर युद्ध भत। कछुयक शक्रधनुकी फौज हटी तब आप ह सेण युद्ध करनेको उद्यमी भये। सो जिस ओर रथ चलाया उस और घोड़ा हस्ती मनुष्य रथ कौऊ टिकै नहीं। सब घाणोंकर वीधे गए। सब कांपते युद्धसे भागे । महा भाजीत कहते भये 'गंगाधर महीधरने बरा किया जो ऐसे पुरुषोत्तमसे युद्ध किया । यह साक्षात् सूर्य समान है, जैसे सूर्य अपनी किरण पसारे, तैसे यह बाणों की वर्षा करै है।' अपनी फौज इटी देख गंगाधर महीधर भी भाजे, तब इनके गुणमात्र में रत्न भी उत्पन्न भये दशवां चक्रवर्ती महा प्रतापको धरे पृथ्वीपर प्रगट भया। यहापि चक्रवर्तीकी विभूति पाई परन्तु अपनी स्त्री रत्न जो मदनावली उसके परणवेकी इच्छासे द्वादश योजन परिमाण कटक साथ ले राजाओंको निवारते तपस्वियोंके बनके समीप आए । तपस्वी वनफल लेकर आये मिले पहिले इनका निरादर किया हुता इससे शंकावान थे सो इनको अति विवेकी पुण्याधिकारी देख हर्षित भये । शतमन्युका पुत्र जो जनमेजय अर मदनावली की माता नागमती उन्होंने मदनावलीको चक्रवर्तीको विधिपूर्वक परणाई तब आप चक्रवर्ती विभूतिसहित कम्पिल्या नगरमें आए बत्तीस हजार मुकु-बंध राजाोंने संग आकर माताके चरणारविंदकों हाथ जोड़ नमस्कार किया, माता वा ऐसे पुत्रको देख ऐसी हर्षित भई जो गातमें न समावे, हर्षके अश्र पावकर व्याप्त भये हैं लो .न जिसके तब चक्रवर्तीने जब अष्टानिका आई तो भगवानका रथ सूर्यसे भी महा मनोज्ञ काढा, अष्टानिकाकी यात्रा करी । मुनि श्रावकोंको परम आनन्द भया बहत जीव जिन धमो अंगीकार करते भये । सो यह कथा सुमालीने रावणसों कही। हे एन ! उस चक्रवतीने भगवानके मंदिर पृथ्वी पर सर्वत्र पुर ग्रामादिमें तथा पर्व पर या नदियो के वटपर अनेक चैत्यालय रत्नभई स्वर्णमयो कराए । वे महापुरुष बात काल चक्रवर्ती संपदा
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