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पा-पुराण
विनय करना, निरन्तर ज्ञानका उपयोग राखना यह सम्यग्दृष्टि श्रावकोंके व्रत तुझे कहे। अब घरके त्यागी मुनियोंके धर्म सुनो, सर्व प्रारम्भका परित्याग दशलक्षण धर्मका धारण सम्यग्दर्शन पर युक्त महाज्ञान वैराग्यरूप यतिका मार्ग है । महामुनि पंच महाव्रतरूप हाथीके कांधे चढे हैं अर तीन गुप्तिरूप दृढ़ वकतर पहरे हैं अर पांच समितिरूप पयादोंसे संयुक्त हैं नाना प्रकार तपरूप तीदण शस्त्रोंसे मंदिन हैं अर चित्तके आनन्द करणहारे हैं ऐसे दिगम्बर मुनिराज कालरूप वैरी को जीते हैं वह कालरूप बैरी मोहरूप मस्त हाथीपर चढ़ा है अर कपायरूप सामंतोंसे मंडित है। यतिका धर्म परनिर्वाणका कारण है महामंगलरूप है उत्तम पुरुषोंके सेवने योग्य है अर श्रावक का धर्म तो साक्षात् स्वर्गका कारण है अर परम्पराय मोक्ष का कारण है स्वर्गमें देवोंके समूहके मध्य तिष्ठता मनवांछित इन्द्रियोंके सुखको भोग है अर मुनिके धर्मसे कर्म काट मोक्षके अतींद्रिय सुखको पावे है । तद्रिय मुख सर्व बाधारहित अनुपम है जिसका अन्त नहीं, अविनाशी है अर श्रावकके व्रतसे स्वर्ग जाय तहांसे चय मनुष्य होय मुनिराजके व्रत धर परमपदको पावै है अर मिथ्यादृष्टि जीव कदाचित् तपकर स्वर्ग जाय तो चयकर एकेन्द्रियादिक योनिविष आय प्राप्त होय है अनन्त संसार भ्रमण कर है इसलिये जैन ही परम धर्म है अर जैन ही परम तप है जैन ही उत्कृष्ट मत है। जिनराजके व न ही सार हैं । जिनसासन के मार्गस जो जीव मोक्ष प्राप्त होने को उद्यमी हुआ उसको जो भव धरने पडें तो देव विद्याधर राजाके भव तो विना चाहे सहज ही होय है जैसे खेती के कारणहारेका उद्य : धान्य उपजानेका है घास कवाड पराल इत्यादि सहज ही होय हैं अर जैसे कोऊ पुरुष नगरको चला उपको मार्गमें वृक्षादिकका संगम खेदका निवारण है तैसे ही शिव रीको उद्यमी भए जे महामुनि तिनको इन्द्रादिक पद शुभोपयोगके कारणसे होय हैं मुनिका मन सि.नमें नहीं, शुद्धोपोगके प्रभावसे सिद्ध होने का उपाय है अर श्रावक अर जैन के धर्मसे जो विपरीत मार्ग है सो अथम जानना । जिससे यह जीव नाना प्रकार कुगतिमें दुःख भोगे है तिर्यंच योनिमें मारण, ताडन, छेदन, भेदन, शीत, उष्ण, भूख, प्यास इत्यादि नाना प्रकारके दुःख भोगे है अर यदा अन्धकारसे भर नरक अत्यन्त उष्ण शीत महा विकराल पवन जहां अग्निक कण बरस हैं नाना प्रकार के भयंकर शब्द जहां नारकियोंको घानीमें पेले हैं करोंतेसे चीरे हैं जहां भयक री शाल्मली वृक्षोंक पत्र चक्र खड्ग सेल समान हैं उनसे तिनके तन खरड खण्ड होय हैं। जहां तांबा शीशा ग.लकर मदराके पीवनहारे पापियों को प्यावें हैं अर मांसभक्षियोंको तिन ही के मांस काट काट उनके मुख में देखें हैं पर लोहके तप्त गोले सिंडासीसे मुख फाड फड जोरा रीये मुबमें देवें हैं अर परदारासंगम करनहारे पापियोंको ताती लोहे की पुतालयोंसे चिपटावें ह जहां मायामई सिंह, व्याघ्र, स्याल इत्यादि अनेक प्रकार बाथा करें हैं अर जहां मयामयी दुष्ट पक्षी तीक्ष्ण च वस चूटे हैं। नारकी सागरोंकी आयु पयंत नाना प्रकार के दुख त्रास मार भाग है। मारते मरै नाहीं आयु पूर्ण कर ही मरे हैं परस्पर अनेक वाधा करें हैं अर जहां माय मयी म का अर मायामयी कृमि मूई समान तीक्ष्ण मुखसे चूटे हैं यह सर्व मायामयी जानने कर पशु पदी तथा विलय तहां न, नारी जीप ही है तथा पंच प्रकारके
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