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सारा पर्व तू तो एक ग्रीवा भी नहीं, जो माताकी रक्षा न करे अर यह कुंभकर्ण हमारी पुकार कानोंसे नहीं सुने ई पर यह विनीता का है सो वृथा है एक भीलसे लड़ने समर्थ भी नहीं पर यह म्लेच्छ तुमारी बहिन चंद्रनवा हो लिये जाय है सो तुमको लज्जा नाहीं। विद्या जो साधिए है सो मारिताको सेवा अर्थ, सो विद्या किस काम आयेगी ? मायामई देवोंने इस प्रकार चेष्टा दिखाई तो भी यह ध्यानसे न डिगे । तब देवोंने एक भयानक माया दिखाई अर्थात् रावणके निकट रत्न अवाका सिर कटा दिखाया अर रामक निकट भाइयोंके सिर कटे दिखाए अर भाइयोंके निकट रामणका भी सिर कटा दिखाया परंतु रावण तो सुमेरु पर्वत समान अति निश्चल हो रहे जो ऐा ध्यान महा मुनि करै, तो अट कम कोषको छेहे परन्तु कुंभकर्ण विभीषयके कछु इक ३ कुलता भई परन्तु कुछ विशेष नाही।
_____ सो रावणको तो अनेक सहस्र विद्या सिद्धि भई जेते मंत्र जपने के नेम किये थे यह पूर्ण होनेसे पहिले ही विद्या सिद्ध भई । धर्मके निश्चयसे क्या न होय अर ऐसा दृढ़ निश्चय भी पूर्वोपार्जिन उमाल कमसे हाय है, कर्म ही संसारका मूल कारण है, कर्मानुसार यह जीव सुख दुख भोगे है, समयविष उत्तन पात्रोंको विधिसे दान देना पर दयाभावसे सदा सबको देना पर अन्त समय समाधिमाण करना अर सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति किती उत्तम जीवहीको होय है। कै एकोंके तो विद्या दश वर्षों में पिद्र होय है, के एकको एक मासमें, कैएकको क्षणमात्रमें, यह सब कर्मीका प्रभाव जानो। रा दिन धरतीपर भ्रमण करो अथवा जल में प्रवेश करो तथा पर्वतके मस्तकसे परो अनेक शरीरक कष्ट करो तथापि पुण्यके उदयके बिना कार्य सिद्ध नही होय। जे उत्तम कर्म नहीं करे हैं वे वृथा शरी. खोवे हैं त.ते सर्व आदरसे प्राचार्योंकी सेवा करके पुरुषोंको सदा पुण्य ही करना योग्य है । पुण्य बिना कहांसे सिद्धि होय ? हे श्रेणिक ! थोड़े ही दिनोंमें अर मंत्र विधि पूर्ण हानेस पहिले ही रावण को महा विद्या सिद्धि भई । जे जे विद्या सिद्धि भई तिन के संक्षेपतासे नाम सुना । नभः संचारिणी कामदाचिनी कामगामिनी दुर्निवारा जगतकंपा प्रगुप्त भानुयालिनी अणिमा लधिमा क्षमा मनस्तंभकारिणी संवाहिनी मध्वंसी कौमारी बध्यकारिणी सुविधाना तमोरूपा दहना विपुलोदरी शुभप्रदा रजोरूपा दिनराविविधायिनी बज्रोदरी समाकृष्टि अदर्शिनी अजरा अमरा अनवस्तंभिनी तोयस्तमिनी गिरिदारिणी अवलोकिनी ध्वंसा धीरा घोरा भुजंगिनी वीरिनी एकभुवना अबध्या दारुणा मदनासिनी भास्करी मयसंभूति ऐशानी विजया जया बंधिनी मोचनो बाराही कुटिलाकृति चित्तोद्भवकरी शांति कौवेरी घशकारिणी योगेश्वरी वलोत्साही चंडा भौतिप्रवर्षिणी इत्यादि अनक महा विद्या रावसको थोड़े ही दिनों में सिद्ध भई तथा कुंभकर्णको पांच विद्या सिद्ध भई। उनके नाम सर्वहारिणी अतिसंबावनी जश्मिनी होमगामिनी नद्रानी तथा विभीषणको चार विद्या सिद्ध भई-सिद्धार्थ शत्रुदमनी ध्याघाता आकाशगमिनी यह तीनों ही भाई विद्याके ईश्वर होते भये पर देवोंके उपद्रवसे मानों नए अन्ममें पाए । तब यक्षोंका पति अनावृत जम्बूद्वीपका स्वामी इनको विधायुक्त देखकर बहुत स्तुवि करता भया अर दिव्य आभूषण पहरा रावणने विद्याके प्रभावसे स्वयंत्रमनगर क्साया । पर नगर
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