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पल-पुराण पवेतके शिखर समान ऊंचे महलोंकी पंक्तिसे शोभायमान है अर रत्नमई चैत्यालयोंसे अति प्रभावको धरे है। जहां मोतियों की जाली ऊंचे झरोखे शोभे हैं, पद्मराग मणियोंके स्तंभ हैं, नानाप्रकार के रत्नोंके रंगके समूहसे जहां इंद्र धनुप होय रहा है , रावण भाइयों सहित उस नगरमें विराजे। कैसे हैं राजमहल आकाशमें लगरहे हैं शिखर जाके, विद्यावलकर मण्डित रावण सुख से तिष्ठे।
- जम्बूद्वीपका अधिपति अनावृत देव रावणसों कहता भया--'हे महामते ! तेरे धीर्यमे मैं बहुत प्रसन्न भवा अर मैं सर्व जम्बूद्वीपका अधिपति हूं, तू यथेष्ट वैरियों को जीतता हुआ सर्वत्र विहार कर। हे पुत्र ! मैं बहुत प्रसन्न भया अर तेरे स्मरणमात्र निकट आऊंगा। तब तुझे कोई न जीत सकेगा अर बहुत काल भाइयोसहित सुखसों राज कर, तेरे विभूति बहुत होऊ." इस भांति आशीर्वाद देव बारम्बार इसकी स्तुति कर यक्ष परिवारसहित अपने स्थानको गया। समस्त राक्षसवंशी विद्याधरोंने सुनी जो रत्नश्रवाका पुत्र रावण महा विद्यासंयुक्त भया सो सब को आनन्द भया । सर्व ही राक्षस बड़े उत्साह सहित रावण के पास आये । कई एक राक्षस नृत्य करें हैं, कई एक गान करे हैं, कई एक शत्रु पक्षको भयकारी गाज हैं, कई एक ऐसे आनन्दसे भर गए हैं कि आनन्द अंगमें न समाव है, कैएक हंसें, कई एक केलि कर रहे हैं। सुमाली रावण का दादा अर उसका छोटा भाई माल्यवान तथा सूपरज रक्षरज राजा बानरवंशी सब ही सुजन आनन्दसहित रावण पै चले, अनेक वाहनों पर चढ हर्पसे आवे है, रत्नश्रवा रावणके पिता पुत्रके स्नेहसे भर गया है मन जिसका ध्वजावोंसे आकाशको शोभित करता हुवा परम विभूति सहित महा मंदिर समान रत्नक स्थपर चढ पाया। बंदीजन विरद बखाने है, सर्व इकठे होयकर पंचसंगम नामा पर्वत पर आए। रावण सम्मुख गया, दादा पिता अर सूर्यरज रक्षरज बड़े है सो इनको प्रणाम कर पायन लगा अर भाइयोंकी बगलगीरि कर मिला अर सेवक लोगोंको स्नेहकी नजरसे देखा अर अपन दादा पिता पर सूरज रक्षरजसे बहुत विनय कर कुशल क्षेम पूछी। बहुरि उन्होंने रावणसे पूछ, रावणका देख गुरुजन एस खुशी भए जो कहवे में न आवे । बारम्बार रावससे सुख वाता पूछ अर स्वयंप्रम नगरको दखकर आश्चर्यको प्राप्त भये । देवलोक समान यह नगर उसको देखकर राक्षसवशी र वानरवंशी सब ही अति प्रसन्न भए अर पिता रत्नश्रवा अर माता केकसी, पुत्रके गातको स्पर्शत हुये अर इसको बारम्बार प्रणाम करता हुआ देखकर चहुत आनन्दको प्राप्त भए । दुपहर के समय रावणने बड़ाको स्नान करावनेका उद्यम किया तब सुनाली आदि रत्नोंके सिंहासन पर स्नानके अथं विराजे। सिंहासन पर इनके चरण पल्लव सरीखे कोमल अर लाल ऐसे शोभते भये जेसे उदयाचल पर्वतपर सूर्य शोभे । बहुरि स्वर्ण रत्नों के कलशोंसे स्नान कराया। कलश कमल के पत्रोंसे आच्छादित है अर मोतियों की मालासे शोभे हैं अर महाकांतिको थर हैं और सुगंध जलसे भर हैं, जिनकी सुगन्धसे दशों दिशा सुगंधमयी होय रही हैं अर जिनपर भ्रमर गुंजार कर रहे हैं। स्नान करावत जब कलशोंका जल डारिए है. तब मेघ सारिखे गाजे हैं, पहल सुगंध द्रमास उपटना लगाय पीछे स्नान कराया।
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