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पद्म-पुराण मानों लंका लेही ली म गनिमीतके कुटुम्बी जो दैत्य कहांवें ऐसे विद्याधर मिले सो युद्ध करके बहुत मरे । कै एक पाय परे कै सानोड़ भाग गये कैएक बैरी कटकमें शरण आए पृथ्वीमें इनको बडो कीर्तिस्पिी । निर्गत इन आगाम सुन लंकासे बाहिर निकसा निर्घात युद्ध में महा शूर वीर है छात्र छावाले याच्यादित किया है सूर्य जिावे। तब दोऊ सेनामें महायुद्ध भया मायामई हाथियो ड़ास किम नो रथ पर पर शुद्ध प्ररमा हाथियोंके मद भरनेसे याकाश जलरूप हं गया ॐ हानिकारक ही ना तडवीजने उनकी पवनसे आकाश मानों पवनरूप हो गया पर म चातानी जो यान उनसे मनो आकाश अग्निरूप ही होगया इस भांति बहु: युनाबमाल नववारी वि. दोनों के मारणसे कहा होय है ? निर्घात ही को मारिये यह चिर निकात पर आएऐशब्द कहने भर कहां वह पापी निर्वात सो निर्घातको देख करथम
तोकणी मालेमा डारा र पर उठा महायुद्ध किया तब मालौने खडगसे निषा को मारा स ताकनरचा निता वंशक भ गकर विजया में अपने २ स्थानको गये अर कैएक कायर हाय बाल होकी रख आए । माली आदि तीनों भाइयोंन लकामें प्रवेश किया । कैसी है लाहा ? बरगलान... पता आदि समस्त परिवारको लकामें बुलाया बहुरि है पुरका राजधय र राणा कोन तिनकी पुत्री चन्द्रमती सो मालीने परणी । कता है चन्द्रमान
फरणहार, हे अर प्रीतिकूर नगरका राजा प्रीतिकांत राणी प्रीतिमती तिनकी त्रापालाशका २०॥ न ल न पाहा र पनकांत नगरका राजा कनक राणी कानाश्री निबीवन ल स बाल्यवानने परणी इनके यह पहली राणी भई अर प्रत्येक के हजार २ सही कछुआबक हा भई ! माल ने अपने पराक्रमसे विजयाधकी दोऊ श्रेणी वश करीव पावरी अशा
२ नाथ बढ़ावते भए । केएक दिनोंमें इनके पिता राजाला नि । म । सुन नए अर राजा कहकंध अपने पुत्र सूरजको राज दय ६२ ।। १५ । ५६ ५ । सुश और कंध समन्त इंद्रियांके सुखको त्यागकर अनेक ५.५ (२६॥ rid न पाकर द्धि स्थान निवासी भए । हनोक ! इस कालिन राजा था वन अनलाल कर फिर रात तजकर श्रामप्यान. यांस सात पाप... गरम र आननशा चालनात नर एना जाना हे राजा का नाश करति दसा को प्राप्त ह ऊ। इत श्रीरविणा विरचित महापद्मपुराण सरत ग्रंथ, ताकी भाषा वेचनिकाविषै
वान शामिका (नरूण ह जाविष ऐता छठा पर्व पूर्ण भया ।। ६॥
प्रधानन्त स्थान पुरम में राजा सहस्रार राज्य करै उसके राणी मानसंदरी रूप अर गुणोंमें अति सु.५२ सो गीही भई अत्यन्त कृश भयः है शरीर जिस शिपल होय गए हैं सर्व बाभूपण जिसके तन भरतारने यदुत आदरसों पूछी कि हे श्रिये ! तर अंग काहस क्षीण भए है, जर सा है जो मानवता होय ता ने श्रवार को समय पूर्ण करू', हे देवा ! तू मेरे
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