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पप-पुराण सर्व विद्याधरों पर अमल करै था तैसा ही अबहू करे, इंद्रकी शंका न राखे विजयार्धके समस्त पुरोंमें अपनी आज्ञा राखे सर्व विद्याधर राजावोंके राजमें महारत्न सुंदर हाथी घोड़े मनोहर कन्या मनोहर वस्त्राभरण दोनों श्रेणियोंमें जो सार वस्तु होय सो मंगाय लेय ठौर २ हलकारे फिरा करें अपने भाइयों के गवसे महा गर्ववान पृथ्वी पर एक आपहीको बलवान जाने ।
अब इन्द्रके बलसे विद्याधर मातीकी आज्ञा भंग करने लगे सो यह समाचार मालीने सुना तब अपने सर्व भाई अपुत्र अर कुलम्ब समस्त राक्षसबंशी अर किहकंधके पुत्रादि समस्त बानरबंशी उनको लार लेय विजया पर्वतके विद्याधरोंपर गान किया। कैएक विद्यावर अति ऊचे विमानोंपर चढ़े हैं, कैएक चालते महल समान सुवर्णके रथोंपर चढ़े हैं, कैएक काली घटा समान हाथियोंपर चढे हैं, कैएक मन समान शीघ्रगामो घोड़ोंपर चढे, कैएक शार्दूलोंपर चढ़े, कैएक चीतोंपर चढ़े, कैएक ऊंटोपर चढे, कई एक खच्चरों पर चढे, कई एक भैंसों पर कई एक हंसों पर कई एक स्यालों पर इत्यादि अनेक मायामई वाहनों पर चढे आकाशका प्रांगन आलादते हुवे। महा देदीप्यमान शरीर धरकर मालीकी लार चढे। प्रथम प्रयाणमें अपसकुन भए तब मालीसे छोटा भाई सुमाली कहता भया बड़े भाईमें अनुराग है जिसका, हे देव ! यहां ही मुकाम करिये आगे गमन न करिये अथवा लंकामें उन्टा चलिये आज अपशकुन बहुत भए हैं सूफे वृक्ष की डालीपर एक पगको संकोचे काग तिष्ठा है अत्यन्त आकुलितहै चित्त जिसका बा-बार पंख हिलावे है सूका काठ चोंच में लिये सूर्यकी ओर देखे है अर क्रूर शब्द बोले है अर्थात् हमारा गमन मनै करे है अर दाहिनी ओर रौद्र सियालिनी रोमांच थरती हुई भयानक शब्द करे है अर सूर्यक बिम्बके मध्य जलेरीमें रुधिर झरता देखिए है पर मस्तकरहित धड नजर आये है अर महा भयानक बज्रपात होय है। कैसा है बज्रपात ? कम्पाया है समस्त पर्वत जिसने अर आकाशमें विखरि रहे है केश जिसके ऐसी मायामयी स्त्री नजर मावे है अर गर्दम ( गधा ) आकाशकी तरफ ऊचा मुखकर खुरके अग्रभागसे धरतीको खोदता हुवा कठोर शब्द करे है इत्यादि अपशकुन होय हैं। तब राजा माली सुमालीसे हंसकर कहते भये । कैसा है राजा माली ? अपनी भुजाओंके यलसे शत्रुओंको गिनते नहीं। अहो वीर ! वैरियोंको जीतना मनमें विचार विजय हस्तीपर चढ़े महायुरुप धीरताको धरते कैसे पीछे वाहुडै, जो शुरवीर दांतोंसे डसे है अथर जिन्होंने अर टेढी करी है भौंह जिन्होंने अर विकराल है मुख जिनका अर बैरीको डराने वाली है आंख जिन्होंकी, तीक्ष्ण बाणोंसे पूर्ण अर बाजे हैं अनेक बाजे जिनके अर मद भरते हाथियोंपर चढ़े हैं अथवा तुरंगनपर चढ़े हैं महावीर रसके स्वरूप आश्चर्य की दृष्टिसे देवोंने देखे जा सामंत वे कैसे पाछै बाहुडै ? मैंन इस जन्ममें अनेक लीला विलास किये। सुमेरु पर्वतकी गुफा तहां नन्दन वन आदि मनोहर वन तिनमें देवांगना समान अनेक राणी सहित नाना प्रकारकी क्रीडा करी अर आकाशमें लग रहे हैं शिखर जिनके ऐसे रत्नोंके चैत्यालय जिनेन्द्र देवके कराये विधिपूर्वक भाव सहित जिनेन्द्रदेवकी पूजा करी अर अर्थी जो याचे सो दिया ऐसे किमिच्छक दान दिये इस मनुष्य लोकमें देवों कैसे भोग भोगे पर अपने यशसे पृथ्वीपर बंश उत्पन्न
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