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पभ-पुराण त्रिकूटाचल मनोज्ञ है तैसा ही किहकुन्द पर्वत मनोज्ञ है । अपने शिखरोंसे दिशारूपी कान्ता को स्पर्श करे है । अानन्द मंत्रीके ऐसे वचन सुनकर राजा कीर्तिववल बहुत आनन्दरूप भए । वानरद्वीप श्रीकण्ठको दिया। तत्र चैत्रके प्रथम दिन श्रीकण्ठ परिवार सहित वानरद्वीपमें गए। मार्गमें पृथ्वी की शोभा देखते चले जाय हैं वह पृथ्वी नीलमणिकी ज्योतिसे आकाश समान शोभे है अर महाग्रहोंके समूइसे संयुक्त समुद्रको देख आश्चर्यको प्राप्त भए बानरद्वीप जाय पहुंचे। वानरद्वीप मानो दूसरा स्वर्ग ही है, आने नीझरनोंके शब्दसे मानों राजा श्रीकण्ठको बुलावे ही है । नीझरने के छांटे आकाशको उछले हैं मो मानो राजाके आनेपर अतिहर्ष को प्राप्त भए अानन्दकर हंसे हैं। नाना प्रकारकी मणियोंसे उपजा जो कांतिका मुन्दर समूह उपसे मानों तोरणके ऊचे समूह ही चढ़ रहे हैं। राजा वानरद्वीपमें उतरे अर सर्व ओर चौगिरद अपनी नील कमल समान दृष्टि सर्वत्र विस्तारी । छुहारे आंवले कैथ अगरचन्दन पीपरली सहीजणांअर कदम्ब आंवला रोली केला दाडिम सुपारी इलायची लवंग मौलश्री अर सर्व जातिव मेवोंसे युक्त नाना प्रकार वृक्षोसे द्वीप शोभायमान देखा ऐसी मनोहर भूमि देखी जिनके देखते हुये पोर ठौर दृष्टि न जाय। जहत सरल अर विस्तीर्ण ऊपर छतसे बन रहे हैं सघन सुन्दर पल्लव अर शाख। फूलनिके समूहरो शोभे हैं अर महा ग्मीले स्वादिष्ट मिष्ट फहोंसे नम्रीभृा होय रहे हैं अर वृक्ष अति ऊचे भी नहीं अति नीचे भी नहीं मानों कल्पवृक्षके समान शोभे हैं जहां बेलनि पर फूलोंके गुच्छो अग रहे हैं जिन पर भ्रमर गंजार रहे हैं सो मानों यह बेल तो स्त्री है, उनके जो पल्ला है सो हाथों की रथेनी हैं श्रर फूलोंके गुच्छे कुच हैं अर भ्रार नेत्र हैं, वृक्षोंसे लग रहे हैं अर ऐसे ही तो सुन्दर पक्षी बोल हैं अर ऐसे ही मनोहर भ्रमर गनार करे हैं मानों परस्पर बालाप करे हैं। जहां कई एक देशको स्वर्ण समान कांतिको थरे हे, कई एक कमल समान, कई एक वैडूर्य मणि मान है। देव नाना प्रकारके वृक्षोंसे मंडत हैं जिसको देख कर स्वर्ग भूमि भी नहीं रुचे है, जहां देव क्रीड़ा करे हैं, जहां हेस सारेस, सूधा, मैना, कबूनर, कमेरी इत्यादि अनेक जातिके पक्षी क्रीड़ा करे हैं। जहां जीवोंको किसी प्रकार की बाधा नहीं, नाना प्रकारके वृक्षोंकी छाया मंडप रत्न स्वर्णके अनेक निवास पुष्पोंकी अति सुगंधि ऐसे उपवन में सुन्दर शिलाके ऊपर राजा जाय विराजे पर सेना भी सकल वनमें उतरी । हों, सारसों, मयूरोंके नाना प्रकारके शब्द सुने अर फल फलों की शोभा देखी, सरोवरों में मीन केल करते देखे वृक्षों के फूल गिरे हैं अर पक्षियोंके शब्द होय रहे हैं सो मानों वह वन राजाके आवन फूलोंकी वर्षा करें है अर जय-जयकार शन्द करै है। नाना प्रकारके रत्नोंसे मंडिा पृथ्वी मण्डलकी शोभा देख २ विद्याधरों चिच बहुत सुखी हुआ अर नन्दनवन साखिा वह वन उपमें राजा श्री.ण्ठने क्रीड़ा करते बहुत बानर देखे । जिनकी अनेक प्रकारकी चेष्टः हैं राजा देख र मनमें बितरने लगे कि तिर्यंच योनिके यह पाणी मनुष्य समान लीला करे हैं । जिनके हाथ पग सर्व प्राकार मनुष्यकासा है सो इनकी चेष्टा देख गजा चकित होय रहे । निकटवर्ती युरुषांसे कहा जो 'इनको मेरे समीप लाप्रा' सो राजा आज्ञासे कई एक बानरोंको लाए। राजाने उनको बहुत प्रीतियों राखे अर नृत्य करना सिखाया और उनके
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