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पद्म-पुराण
करूगा पर महामनोहर नाना प्रकारके पुष्प, धूप, गंध इत्यादिक अष्टद्रव्योंसे पूजा करूंगा, बारम्बार धरतीपर मस्तक लगाय नमस्कार करूंग इत्यादि मनोरथ किए हुए थे वे पूर्वोपार्जित अशुभ कर्मसे मेरे मंदभागी के भाग्यमें न भए। मैंने आगे अनेक बार यह बात सुनी थी कि मानुषोचर पर्वतको उल्लंघकर मनुष्य आगे न जाय है तथापि अत्यन्त भक्ति रागकर यह वात भूल गया । अब ऐसे कर्म करू जो अन्य जन्ममें नन्दीश्वर द्वीप जानेकी मेरी शक्ति हो, यह निश्चय. कर वज्रकंठ नामा पुत्रको राज्य देय सर्व परिग्रहको त्यागकर राजा श्रीकंठ मुनि भए।
एक दिन बनाउने अपने पिताके पूर्व भव पूछनेको अभिलाष किया तब वृद्ध पुरुष वज्रकंठको कहते भए कि हमको मुनियोंने उनके पूर्व भव ऐसे कहे हुते जो पूर्व भवमें दो भाई बणिक थे उनमें प्रीति बहुत थी, स्त्रियोंने वे जुदे किए, उनमें छोटा भाई दरिद्री अर वड़ा धनवान था । सो बड़ा भाई सेठका सतिसे श्रावक भया अर छोटा भाई कुव्यसनी दुःखसों दिन पूरे करे। बड़े भाइन छोटे भाईकी यह दशा देख बहुत धन दिया अर भाईको उपदेश देय ब्रत लिवाए अर आप स्त्रीको त्यागकर अनि होप समाधि मरणकर इन्द्र भए अर छोटा भाई शांतपरिणामी होय शरीर छोड़ देव हुश्रा । देसे चयकर श्रीकंठ भया । बड़े भाईका जीव इंद्र भया था सो छोटे भाईके स्नहस अपना स्वरूप दिखावता संता नन्दीश्वर द्वाप गया सो इंद्रको देख राजा श्रीकंठ को जाति स्मरण हुना। यह परागा भए । यह अपने पिताका व्याख्यान सुन राजा बज्रकण्ठ इन्द्रायुधप्रभ पुत्रका राज दर मुनि भए अर इन्द्रायुधप्रभ भी इन्द्रभूति पुत्रको राज्य देय मुनि भए तिनके मेरु, मेरुक मन्दिर, तिन समीरणगति, तिनके रविप्रभ, तिनके अमरप्रभ पुत्र हुआ, उसन लंकाके धनीकी बेटी गुणवती परणी, मुरणवी राजा अमरप्रभके महलमें अनेक भांतिके चित्राम देखती भई । कहीं तो शुभ सरोवर देखे जिनमें कमल फूल रहे हैं अर भ्रमर गुंजार करे हैं कहीं नील कमल फूल रहे है हंसके युगल क्र ड़ा कर रहे हैं जिनकी चोचमें कमलके तंतु हैं अर क्रोच सारस इत्यादि अनेक पाक्षयोंके चित्राम देखे सो प्रसन्न भई अर एक ठौर पंच प्रकारके रत्नोंके चूर्णसे बानरोंके स्वरूप देख । वे विद्याधरोन चितेरे हैं सो राणी बानरोंके चित्राम देख भयभीत होय कांपने लगी, रोमांच होय अाये, परेवकी बूदोंसे माथेका तिलक बिगड़ गया, अर अांखोंके तारे फिरने लगे। राजा यमरप्रभ यह वृत्त त देखा परके चाकरोंसे बहुत खिझे कि मेरे विवाहमें ये चित्राम किसने कराये। मेरी प्य री राणा इनको देख डरी । तब बड़े लोगांने अरज करी कि महाराज ! इसमें किसीका भी अराध नहीं, आपने कही जो यह चित्राम कराणेहारेने हमको विपरीत भाव दिखाया सो ऐसा कौन है जो आपकी आज्ञा सिवाय काम करे ? सबके जीवनमूल
आप हो, आप प्रसन्न होयकर हमारी विनतो सुनो । अागे तुम्हारे वंशमें पृथ्वीपर प्रसिद्ध राजा श्रीकंठ भए । जिनने यह स्वर्ग समान नगर बसाया अर नाना प्रकारके कौतूहलको धारणेवाला जो यह देश उसके वह मूलकारण ऐसे होते भए जेसे क का मूल कारण रागादिक प्रपंच, बनके मध्य लतागृह में सुखसो तिष्ठी हुई किन्नरी जिनके गुण गावें हैं, इन्द्र समान जिनकी शक्ति थी ऐसे वे राजा इन्होने अपनी स्थिर प्रकृतिसे लक्ष्मीकी चंचलतासे उपजा नो अपयश सो दूर
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