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छठा पर्व
किया, अर जो पुत्रीकी सखी आई थी उसको भी सन्मानकर विदा दीनी । वे हर्षकर भरे लंका आये अर राजा पुष्पोत्तर सर्व अर्थक वेत्ता पत्रीकी बीनतीसे श्रीकण्ठसे क्रोध तज अपने स्थानको गए।
___ अथानन्तर मार्गशिर सदी पडयाके दिन श्रीकण्ठ अर पमाथामा विवाह भया अर कीर्तिधवलने श्रीकण्ठसों कहा जो 'तुम्हारे बैरी विजपा में बहुत हैं तातै तुम यहां ही समुद्रके मध्यमें जो द्वीप है तहां तिष्ठो' तुम्हारे मनको जो स्थानक रुचे सो लेबो, मेरा मन तुमको छोड़ नहीं सके है अर तुम भी मेरी प्रीतिका बन्धन तुडाय कैसे जावोगे ऐसे श्रीकण्डमों कहकर अपने आनन्द नामा मन्त्रीसे कही 'जो तुम महाबुद्धिमान हो पर हमारे दादे के मुह आगिले हो, तुमसे सार असार कुछ छाना नाहीं है, श्रीकण्ठयोग्य जो स्थानक होय मो बनायो । तब आनन्द कहते भए कि महाराज ! आपके सत्र ही स्थानक मनोहर हैं तथापि भार ही देखकर जो दृष्टिमें रुचे सो दें। समुद्र के मध्यमें बहुत द्वीप हैं कल्पवृक्ष सनन वृक्षोंसे मंडे। जहां नाना प्रकारके रत्नोंकर शोभित बड़े बड़े पहाड़ हैं। जहां देव क डा करे हैं तिज द्वीपों में महारमणीक नगर हैं जहां स्वर्ण रत्नोंके महल हैं सो उनके नाम नमो। संध्याकार सुोल कांचन हरिपुर जोधा जलविध्वान हंसद्वीप भरक्षम अर्धस्वर्ग कूटावर्त विघट रोधन अमलकांत स्फुट रत्न्द्वीप तोयावली सर अलंघन नभोभा क्षेम इत्यादि मनोज्ञ स्थानक है। जहां देव भी उपद्रा न कर सकें। यहां के उचर भाग तीनसो योजन समुद्र के मध्य वानरद्वोर है जो पृथ्याने प्रसिद्ध है जहां अधांतरद्वीप बहुत रमणीक हैं, कई एक तो सूर्य कांति मग पोंकी यांतिने देदीप्यमान हैं और कई एक हरित मणियोंकी कांतिसे ऐसे शोभे हैं मानो उगते हरे तुगों से भूमि व्याप्त हो रही है अर कई एक श्याम इन्द्र नीलमणि की कांतिके समूहसे ऐसे शोभे हैं मानों सूर्य के अपने अन्धकार वहां शरण आकर रहा है और कहीं लाल पन राग मणिगों के समूहसे मन रक्त कमलों का बन ही शोभे है जहां ऐसी सुगन्य पवन चले है कि आकाराने उड़ो पक्षी भी सुगन्धसे मग्न हो जाय हैं अर वहां वृक्षोंपर आय बैठे हैं अर स्फटिक मणिके मध्यमें जो पमराग मणि मिना है उनसे सरोवरमें पंक ही कमल जाने जाय हैं उन मणियोंकी ज्योतिसे कम के रंग न जाने जाय हैं जहां फूलों की बाससे पक्षी उन्मत्त भए ऐसे उन्मत्त शब्द करे हैं मानो सम पके द्वगरे अनुराग भरी बातें करे है । जहां औषधियोंकी प्रभाके समूहसे अन्धकार दूर होय है सो अंधेरे पक्षमें भी उद्योत ही रहे हैं जहां फल पुष्पोंसे मंडित वृत्तोंका आकार छत्र समान है। जिनके बड़े २ डाले हैं उनपर पक्षी मिष्ट शब्द कर रहे हैं जहां बिना बाहे वान पाप हो उगे हैं वह वान वीर्य अर कांतिको विस्तीरणेवाले हैं मंद पवनसे हिलतं हुए शोभे हैं । उनसे पृथ्वी मानो कंचुक ( चोला) पहरे है। जहां नीलकमल फूल रहे हैं जिनपर भ्रमरोंके समूह गुजार करै है मानो सरोवरी ही नेत्रोंसे पृथ्वीका विलास देखे है । नीलकमल तो सरोबरीनिके नेत्र भए भ्रमर भौहे भए । जहां पौढ़े अर सांठों की विस्तीर्ण बाडी हैं। सो पवन के हालने से शब्द करे हैं ऐसा सुन्दर बानरद्वीप है उसके मध्यमें किहकुदा नामा पर्वत है, वह पर्वत रत्न अरस्वर्णकी दिलाके समूहसे शोभायमान है जैसा यह
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