________________
४६
पद्म-पुराण
आवली द्वीप १० यह दश नगर में नुरक्षके पुत्रोंने बसाए । कैसे हैं वे नगर ? जिनमें नाना प्रकार के रत्नोंसे उद्योत हो रहा है सुकी भींति तिनसे दैदीप्यमान वे नगर क्रीड़ा के अर्थी राक्षसोंके निवास होते भए, बड़े बड़े विद्याधर देशान्तरोंके बासी वहां आय महा उत्साहकर निवास करते भए ।
अथानन्तर पुत्रोंको राज देय अमररक्ष भानुरच यह दोनों भाई मुनि होय महा तपकर मोक्ष पदको प्राप्त भए, इस भांति राजा मेघवाहनके बंशमें बड़े २ राजा भए । ते न्यायवन्त प्रजापालनकर सकल बस्तुसे विरक्त होय मुनिके व्रत धार कई एक मोक्षको गये, कई एक स्वर्ग में देवता भए, उस वंशमें एक राजा रक्ष भये उनकी राणी मनोवेगा उसके पुत्र राक्षस नामा राजा भये तिनके नामसे राक्षस वंश कहाया । यह विद्याधर मनुष्य हैं, राक्षस योनि नही, राजा राक्षसके राणी सुप्रभा उसके दो पुत्र भए । आदित्यगति नामा बड़ा पुत्र अर छोटा बृहत्कीर्ति, यह दोनों चन्द्र सूर्य समान अन्यायरूप श्रंथकारको दूर करते भये, तिन पुत्रोंको राज देय राजा राक्षस मुनि होय देवलोक गये, राजा आदित्यगति राज्य करें पर छोटा भाई युवराज हुवा घड़े भाईकी स्त्री सदनपद्मा पर छोटे भाईकी स्त्री पुष्पन भई । श्रादिगतिका पुत्र भीमप्रभ भया । ताके हजार राणी देवांगन समान वर एकमौ आठ पुत्र भए जो पृथ्वीके स्तम्भ होते भये। उनमें बड़े पुत्र को राज्य देय राजा भीमप्रभ वैराग्यको प्राप्त होय परमपदको प्राप्त भये । पूर्व राक्षसोंके इन्द्र भीम सुभीमने कृपाकर मेघवाहनको राक्षस द्वीप दिया सो मेघवाहनकेवंशमें बड़े बड़े राजा राक्षस द्वीप के रक्षक भए, भीमप्रभका बड़ा पुत्र पूजाई सो अपने पुत्र जितभास्कर को राज्य देय मुनि भए थर जितभास्कर संपरकीर्ति नामा पुत्रको राज्य देय मुनि भये श्रर संपरकीर्ति सुग्रीव नामा पुत्रको राज्य देय मुनि भये । सुग्रीव हरिग्रीवको राज्य देय उग्रतपकर देवलोक गया पर हरिग्रीव श्रीग्रीवको राज्य देय वैराग्यको प्राप्त भए र श्रीग्रीव सुमुख नामा पुत्रको राज्य देय मुनि भये । अपने बड़ों ही का मर्ग अंगीकार किया और सुमुख भी सुव्यक्तको राजदेव आप परम ऋषि भए र सुव्यक्त अमृतवेग को राज देय बैरागी भये र अमृतवेग भानुगतको राज देय यति भये अर वे हू चिताको राज देकर निश्चिन्त भये र चिन्तागति भी इंद्रको राजदेयमुद्रभये । इस भांति राक्षम बंशमैं अनेक राजा भये तहां राजा इंद्रके इंद्रप्रभुताके मेघ, तार्क मृगादमन, ताके पवि, ताके इंद्रजीत, ताके भानुवर्मा, ताके भानु, सूर्य समान तेजस्वी, ताके मुरारी, ताके त्रिजत्, ताके भीम, ताके मोहन, ताके उद्धारक, ताके रवि, वाके चाकर, ताके वज्रव्य, ताके प्रमोद, नाके सिंहविक्रम, ताके चामुण्ड ताके मारख, ताके भीष्म, ताके द्रुपवाह, ताके अरिमर्दन ताके निर्वाणभक्ति, ताके उग्रश्री, ताके अर्हद्भक्त, ताके अनुत्तर, तागतभ्रम, ताके नि, ताके चंड, ताके लंक, ताके मयूरवादन, ताके महाबाहु, ताके मनोरम्य, ate भास्करप्रभ, ताके वृद्गति, ताके वृहद कित र ताके अरिसंत्रास, ताके चन्द्रावर्त, ताके महारत्र, ताके मेघध्वान, ताके ग्रहतोभ, ताके नक्षत्रदमन । इस भांति कोटिक राजा भये । बड़े विद्याधर महाबलमंडित महाकांतिके धारी पराक्रमी परदाराके त्यागी निज स्त्रीमें है संतोष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org