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अपम पर्व जिलमंदिरका निर्मापण करना अर जिनधर्मका उद्योत करना, और श्रीहरिषेण चक्रवर्तीका चरित्र राजा सुमालीने रावणकू कह्या सो भावसहित सुनना । कैसा है हरिषेण चक्रवर्तीका चरित्र पापनिका नाश करण हारा।
बहुरि तिलोकमण्डन हाथीका वश करना, अर राजा इन्द्रका लोकपाल यमनामा विद्याधर ताने वानरवंशीके राजा सूर्यरजकू पकरि बंदीखाने डारया सो रावण समेदशिखरकी यात्रा करि डेरा पाये थे सो सूर्यरजके समाचार सुनि ताही समै गमन करना अर जाय यमजीतना। यमके थाने उठावना अर याका भाजना राजा सूर्यरजकू बंदीत छुड़ावना अर किहकंधापुरका राज्य देना । बहुरि रावणकी बहिन सूपनखा ताकू खरदूषण हरि लेगया सो बाही परिणाय देना पर ताहि पाताल लंकाका राज देना सोखरदूषणका पाताल लंका जाना पर चंद्रोदर कौं युद्धविर्ष हनना अर चन्द्रोदर की रानी अनुराधाकू पतिके वियोगत महादुःखका होना अर चंद्रोदरके पुज्ञ विराधितका राज्यभ्रष्ट होइ कहूंका कहूं रहना अर बाल्यका वैराग्य होना सुग्रीवकू राज्यकी प्राप्ति अर कैलास पर्वतावर्षे बाल्यका विराजना रावणका वाल्यसू कोप करि कैलास उठावना पर चैत्यालयनिकी भक्तिके निमित्त बाल्य पगका अङ्गुष्ठ दाव्या तब रावणका रोवना अर रानीनिकी विनतीत बालीका अङ्गुष्ठ का ढीला करना ।
अर बाल्यके भाई सुग्रीवका सुतारासू विवाह अर साहसगति विद्याधर ताराकी अभिलाषा हुती सो अलाभते संतापका होना अर राजा अनारण्य अर सहस्रकिरणका वैराग्य होना भर रावणने यज्ञ नाश किया ताको वर्णन, अर राजा मधुके पूर्व भवका व्याख्यान अर रावण की पुत्री उपरंभाका मधुसा विवाह अर रावणका इन्द्रपर जाना इन्द्र विद्याधरकी युद्धकरि जीतना परिकरि लंकामें ल्यावना बहुरि छोड़ना अर ताको वैराग्य लेय निर्वाण होना अर रावणका प्रताप अर सुमेरु पर्वत पर गमन बहुरि पाछा भावना अर अनंतवीर्य मुनि केवलज्ञानकी प्राप्ति सवयका नेम ग्रहण-जो परस्त्री मोहि न अभिलाष ताहि मैं न सेवू । बहुरि हनुमानकी उत्पत्ति, कैसे हैं हनुमान ? वानरवंशीनिविषे महात्मा हैं । कैलास पर्वत विष अंजनीका पिता जो राजा महेंद्र, ताने पवनं जय का पिता जो राजा प्रहलाद तासों सम्भाषण कीया-जो हमारी पुत्रीका तुम्हारे पुत्र सम्बन्ध करहु । सो राजा प्रहलादने प्रमाण कीया। अंजनीका पवनंजयसू विवाह होना बहुरि पवनंजयका अंजनीसों कोप अर चकवा चकवीके वियोगका वृत्तांत देखि अंजनीसू प्रसन्न होना अंजनीके गर्भका रहना । अर हनुमानके पूर्व जन्म वनमें अंजनीकू मुनिने कहे। पर हनुमानका जीवका गुफावि जन्म बहुरि अनुरुद्ध द्वीपमें वृद्धि प्रतिसूर्य मामाने अंजनी बहुत आदरसों राखी बहुरि पवनंजयका भूताटवीविर्ष प्रवेश अर पवनजयके हाथीकू देखि प्रति
यंका तहां अावना पवनंजयकू अंजनीके मिलापका परम उत्साह होना पुत्रका मिलाप होना पर.पक्नंजपका राक्णके निकट जाना । अर रावणकी आज्ञार्ते वरुणसूयुद्धकार ताहि जीतना। समणके बड़े राज्यका वर्णन तीर्थकरकी श्रायुका अंतरालका वर्णन बलभद्र नारायण प्रतिजासापाचवीनिक सकल चारित्रका वर्णन । अर राजा दशरथको उत्पाँच अर केकाईक
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