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पद्मपुराणे...
मरुदेवी माता सुगन्ध महलसे बाहर आई र सकल प्रभातकी क्रियाकर जैसे सूर्यकी प्रभा सूर्य के समीप जाय तैसे नाभिराजा के समीप गई, राजा देखकर सिंहासनसे उठे राखी वराबर आय बैठी, हाथ जोडकर स्वप्ननिके समाचार कहे तव राजाने कहा - हे कल्याणरूपिणी ! तेरे त्रैलोक्यका नाथ श्री आदीश्वर स्वामी प्रगट होइगा । यह शब्द सुनकर कमलनयनी चन्द्रवदनी परमहर्षको प्रप्स भई अर इन्द्र की आज्ञासे कुवेर पंद्रह महीनातक रत्नों की वर्षा करते भये | जिनके गर्भ में आये छै मास पहिलेसे ही रत्नोंकी वरषा भई इसलिये इन्द्रादिक देव saat हिरण्यगर्भ ऐसा नाम कहि स्तुति करते भए अर तीन ज्ञानकर संयुक्त भगवान माता के गर्ममें आय विराजे माता को किसी प्रकारकी भी पीडा न भई ।
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जैसे निर्मल स्फटिकके महलसे बाहिर निकसिये तैसे नवमे महीने ऋषभदेव स्वामी गर्भसे बाहिर आए तब नाभिराजने पुत्रके जन्मका महान उत्सव किया, त्रैलोक्य के प्राणी अति हर्षित भए, इन्द्र के कासन कम्पायमान भए र भवनवासी देवके बिना बजाए शंख बजे अर व्यन्तरोंके स्वयमेव ही ढोल बाजे और ज्योतिषीदेवों के अकस्मात् सिंहनाद बाजे र कल्पवासियों के बिना बजाये घंटा बाजे, या भांति शुभ चेष्टायों सहित तीर्थंकर देवका जन्म जोन इन्द्रादिक देवता नाभिराजाके घर आये, कैसे हैं इन्द्र औरावत हाथी पर चढे है अर नाना प्रकार के आभूषण पहरे हैं, अनेक प्रकार के देव नृत्य करते भये देवाक शब्दसे दशो दिशा गुंजार करती भई, अयोध्यापुरीकी तीन प्रदक्षिणा देय कर राजा के आंगन में आये, कैसी है अयोध्या ? धनपातेने रची: है, पर्वत के समान ऊंचे कोटसे मंडित हैं जिसकी गम्भीर खाई है अर जहां नाना प्रकार के रत्नोंके उद्योत से घर ज्योति रूप होय रहे हैं । तब इन्द्रने इन्द्राणीकू भगवान्के लावनेकों माता के पास भेजी, इन्द्राणी जाय नमस्कार कर मायामई बालक माताके पास रखकर भगवान्को लाइ इन्द्र के हाथ में दिया । भगवानका रूप त्रैलोक्यके रूपको जीतने वाला है । इन्द्रने हजार नेत्र से भगवानके रूपको देखा तो भी तृप्त न भया । बहुरि भगवानकू सौधर्म इन्द्र गोदमें लेय हस्ती पर चढे, ईशान इन्द्रने छत्र धरे, अर सनत्कुमार महेंन्द्र चमर ढोरते भये अन्य देव जय जयकार शब्द उच्चारते भए फिर सुमेरु पर्वत के शिखर पर पांडुक शिला पर सिंहासन ऊपर पधारे। अनेक बाजों का शब्द होता भया जैसा समुद्र गरजे अर यक्ष किन्नर गंधर्व तु बरु नारद अपनी स्त्रियों सहित गान करते भए, कैसा है वह गान मन र श्रोत्र (कान) का हरणहारा है, जहां बीन यदि अनेक वादत्र वाजते भए, अप्सरा हाव भावकर नृत्य करती भई अर इन्द्र स्नानके अर्थ क्षीरसागर के जलसे स्वर्ण कलश भर अभिषेक करनेको उद्यमी भए, कैसे हैं कलश, जिनका मुख एक योजना है अर चार योजनका उदर है आठ योजन ओडे अर कमल तथा पल्लवसे ढके हैं जैसे कलशोस इन्द्रन कामषेक कराया, विक्रियां ऋद्धि की समर्थतास इंद्रने अपने अनेक रूप किये इंद्रोंके लोकपाल सोम वरुण यम कुवेर सर्व ही अभिषेक करावते भए, इन्द्राणी आदि देवी अपने हाथोंसे भगवानके शरीरपर सुगंध का लेपन करती भई । कैसी है इन्द्राणी, पल्लव (पत्र) समान हैं कर जाके, महागिरि समान जो भगवान तिनको भष समान कलरास अपेक कराया,
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