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पद्म पुराण
प्रकाशित हो रही हैं महा कोमल शरीर हैं । माता भगवानको देखकर महा हर्षको प्राप्त भई अर कहने में न आवे सुख जिसका ऐसे परमानन्द सागरमें मग्न भई । वह माता भगवान को गोद में लिये ऐसी शोभती भई जैसे उगते सूर्य्यसे पूर्व दिशा शोभे । त्रैलोक्य के ईश्वरको देख नाभिराजा आपको कृतार्थ मानते भए, पुत्रके गात्रको स्पर्शकर नेत्र हर्षित भए, मन आनन्दित भया समस्त जगविषै मुख्य ऐसे जे जिनराज तिनका ऋषभ नाम थर माता पिता सेवा करते भए । हाथ के अंगुष्ठ इन्द्रने अमृत रस मेला उसको पानकर शरीरवृद्धिको प्राप्त भये । प्रभुकी वय (उमर) प्रमाण इन्द्रने देवकुमार रक्खे उन सहित नि:पाप क्रीडा (खेल) करते भये कैसी है वह क्रीडा ? माता पिताको सुखकी देनहारी है ॥
अथानंतर भगवान के आसन शयन सवारी वस्त्र आभूषण अशन पान सुगंधादि विलेपन गीत : नृत्य वादित्रादि सर्व सामग्री देवोपनीत होती भई । थोड़े ही काल में अनेक गुणोंकी वृद्धि होती भई । रूप उनका अत्यन्त सुन्दर जो वर्णनमें न आवे, मेरुकी भीति समान महा उन्नत महा दृढ़ वक्षस्थल शोभा भया अर दिग्गजके थंभ समान बाहु होती भई, कैसी है वह बाहु जगतके अर्थ पूर्ण करनेको कल्प वृक्ष ही है और दाऊ जंघां त्रैलोक्य घरके थांभवेको थंभ ही हैं और मुख महा सुन्दर मनोहर जिसने अपनी कांतिसे चन्द्रमाको जीता है अर दीप्तिसे जीता है सूर्य जिसने अर दोऊ हाथ कोंपल से भी अति कोमल घर लाल हथेली पर केश महा सुन्दर सघन दीर्घ वक्र पतले चीकने श्याम हैं मानो सुपेरुके शिखरपर नीलाचल ही विराजे है। र रूप महा अद्भुत अनुपम सर्वलोक के लोचनको प्रिय जिसपर अनेक कामदेव वारे जानें सर्व उपमाको उलंघें सर्वका मन र नेत्र हरे इस भांति भगवान कुमार अवस्थामें भी जगतको सुखदायक होते भए । उस समय कल्पवृक्ष सर्वथा नष्ट भये पर बिना वाहे धान अपने आप ही उगे उनसे पृथिवी शोभती भई अर लोक निपट भोले पट कर्मसे अनजान उन्होंने प्रथम इतु रसका आहार किया वह आहार कांतिके वीर्यादिकके करनेको समर्थ है । कै एक दिन पीछे लोगोंको क्षुधा वधी जो इक्षुरससे तृप्ति न भई तब लोक नाभिराजाके निकट आए नमस्कार कर विनती करते भये कि हे नाथ ! कल्पवृक्ष समस्त तय हो गये अर हम क्षुधा तृपाकर पीडित हैं तुमारे शरण आए हैं तुम रक्षा करो, यह कितनेक फलयुक्त वृक्ष पृथ्वीवर प्रगट भये हैं इनकी विधि हम जानते नहीं हैं, इनमें कौन भक्ष्य है कौन अभक्ष्य है, अर गाय भैसके थनोंसे कुछ भरे है पर वह क्या है और यह व्याघ्र सिंहादिक पहले सरल थे अवतारूप दीखे हैं र यह महामनोहर स्थलपर अर जल में पुष्प दीखे हैं सो का है ? हे प्रभु ! तुमारे प्रसादकर आजीविकाका उपाय जानें तो हम सुखग्यों जीवें । यह वचन प्रजाके सुनकर नाभिराजाको या उपजी नाभिराजा महाधीर तिनकों कहते मये कि इस संसार में ऋषभदेव समान पर कोई भी नाहीं जिनकी उत्पत्ति में रत्नोंकी वृष्टि र इन्द्रादिक देवोंका आगमन भया, लोकोंको हर्ष उपजा, वह भगवान महा अतिशय संयुक्त हैं तिनके निकट जागकर हम तुम आजीविकाका उपाय पूछें, भगवानका ज्ञान मोह तिमिरके अन्त तिष्ठा है । प्रजासहित नाभिराजा भगवान के समीप गये
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