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पंच-पुराण
इन्द्रद्य मणि तिनके महेन्द्रजित तिनके प्रभु तिनके विभु तिनके अविध्वंस तिनके वीतभी तिनके वृषभध्वज तिनके गरुडांक तिनके मृगांक, इस भांति सूर्यवंशविर्षे अनेक राजा भये ते संसारके भ्रमण भयभीत पुत्रोंको राज देय मुनि व्रतके धारक भए, महा निर्ग्रन्थ शरीरसे भी निस्पृही यह सूर्यवंशकी उत्पत्ति तुझे कही। अब सोमवंशकी उत्पत्ति तुझे कहिए है सो सुन ।
ऋषभदेवकी दूसरी राणीके पुत्र बाहुबली तिनके सोमयश तिनके सौम्य तिनके महाबल तिनके सुबल तिनके भुजबली इत्यादि अनेक राजा भए, निर्मल है चेटा जिनकी मुनिव्रत धार परम थामको प्राप्त भए । कई एक देव होय मनुष्य जन्म लेकर सिद्ध भए, यह सोमवंशकी उत्पत्ति कही । अव विद्याधरनके वंशकी उत्पत्ति सुनहु ।
नमि रत्नमाली तिनके रत्नवत्र तिनके रत्नरथ तिनके रत्नचित्र तिनके चन्द्ररथ तिनके बज्रजप तिनके वज्रसेन तिनके बजूदंष्ट्र तिनके बन्धुज तिनके बजायुध तिनके बज तिनके सुबजू तिनके बजूभृत् तिनके बजाम तिनके बजबाहु तिनके बांक तिनके बजभुन्दर तिनके बज्रास्य तिनके बज्रपाणि दिनके बज्रभानु तिनके बज्रवान तिनके विद्युन्मुख तिनके सुवक्र तिनके विद्यु इंष्ट्र अर उनके पुत्र विद्युत अर विद्यु दाभ अर विद्युद्वेग, अर विधु त इत्यादि विद्याधरोंके वंशमें को राजा भए अपने पुत्रको राज देय तिन दीक्षा धर राग का नाशकर सिद्ध पदको प्राप्त भए । कई एक देवलोक गए जे मोहपाशसे बंधे हुते ते राजवि मरकर कुगतिको गए।
___अब संजयति मुनिके उपसग । कारण कहै है कि-विद्य दंष्ट्र नामा राजा दोऊ श्रेणीका अधिपति विद्यावलसे उद्त विमान में बैठा विदेहक्षेत्रमें गया तहा संजयति स्वामीको ध्यानारूढ़ देखा जिनका शरीर पर्वत समान निश्चल है उस पायोने मुनिको देखकर पूर्व जन्मके विरोध से उन को उठाकर पंचगिरी पर्वतपर धरे श्रर लाकों को कहा कि इसे मारो, पापी जोंने यष्टि मुष्टि पापाणादि अनेक प्रकारसे उनको मारा मुनिको शमभावके प्रसादसे रंचमात्र थी क्लेश न उजा दुस्सह उपसर्गका जोत लोकालोकका प्रकाशक केवल ज्ञान उपजा, सवदेव बंदना को आए, धरणींद्र भी आए, वह धरणींद्र पूर्वभवमें मुनिके भाई थे इसलिए क्रोधकर सब विद्य धरोको नाग कांसमें बांधे, तब सबनने विनती करी कि यह अपराध विधु दंष्ट्रका है, तब अन्यको छोड़ा अर विद्य इंष्ट्रको न छाड़ा, मारणको उद्यमी भए तब देवोंने प्रार्थना करके छुड़ाया, छोड़ा तो परन्तु विद्या हर ली, तब इसने प्रार्थना करी कि हे प्रभो! मुझे विद्या कैसे सिद्ध होयगी, धरणींद्रने कहा कि संजयति स्वामीकी प्रतिमाक समीप तप क्लेश करनेसे तुमको विद्या सिद्ध होयगी परंतु चैत्यालयके उलंघनसे तथा मुनियोंके उलंघनसे विद्याका नाश हावेगा इसलिये तुमको तिनकी बंदना करके आगे गमन करना योग्य है। तब धरणींद्रने संजयत स्वामीका पूछा कि हे प्रभो ! विद्यु ६ष्ट्रने आपको उपसर्ग क्यों किया, भगवान संजयत स्वामीने कहा कि मं चतुगतिविपै भ्रमण करता सकट नामा ग्राममें दयावान प्रियवादी हितकार नामा महाजन मथा, निष्कपट साभाव साधु सेवा तत्पर सो समाधि मरणकर कुमुदावती नगरीमें न्याय मागी श्रीवर्थन नामा राजा हुवा, उस ग्राममें एक ब्राह्मण जो अज्ञान तपकर कुदेव हुआ था वहांसे चयकर राजा श्रीवधन बन्दि
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