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तृतीय पर्व अर समस्त प्रजा नमस्कार कर भगवानको स्तुति करती भई, हे देव ! तुम्हारा शरीर सर्वलोक को उलंघकर तेजोनय भासे है सर्व लक्षण सम्पूर्ण महाशोभायमान हैं अर तुम्हारे अत्यन्त निर्मल गुण सर्व जातमें व्याप रहे हैं वे गुण चन्द्रमा, हिरण समान उज्मल महा अानन्दके करणहार हैं । हे प्रभु ! हम कार्ग के अर्थ तुम्हारे पिताके पास आए थे सो यह तुम्हारे निकट लाये हैं। तुम महापुरुष महा बुद्धिमान महा अतिशयकर मंडिा हो जो ऐसे बड़े पुरुष भी तुमको सेवे हैं इसलिये तुज दालु हो हमारी रक्षा करो। क्षुधा. तृपा हरनेका उपाय कहो अर जिसमें सिंहादिक ऋर जीवोंका भी भय मिटे सो उपाय बताओ । तब, भगवान कृपानिधि कोमल है हृदय जिनका. इन्द्रको कर्म भूमिकी रीति प्रगट करने की आज्ञा करते भए प्रथम नगर ग्रान गृहादिककी रचना भई अर जे मनुष्य शूरवीर जाने तिनको वृत्रिय वर्ण ठहराए अर उनको यह प्राज्ञा भई कि तुम दीन अनाथों की रक्षा करो । कै एकनको वाणिज्यादिक कर्म बताकर वैश्य ठहराए अर जो सेवादिक अनेक कर्म करनेवाले उनको शूद्र ठहराए, इस भांति भगवानने किया जो यह कर्मभूमि रूप युग उसको प्रजा कृतयुग (सत्ययुग) कहते भए अर परम हर्षको प्राप्त भए । श्रीऋषभदेवके सुनन्दा अर नन्दा यह दो राणी भई, बड़ा राणीके भरतादिक सौ पुत्र अर एक ब्राह्मी पुत्री भई अर दूसरी राणीके बाहूबल एक पुत्र अर सुन्दरी एक पुत्री भई इतनकार भगतानने त्रसठ लाख पूर्वकाल राज किया अर पहले बीस लाख पूर्व कुमार रहे इस भांति तिरासी लाख पूर्व गृहमें रहे ।
एक दिन नीलांजना अप्सरा नृत्य करती करती विलाय (मर) गई उसको देखकर भगवानकी बुद्धि वैराग्यमें उत्तर भई । वह विचारने लगे कि यह संसारके प्राणी वृथा ही इन्द्रियोंको रिझाकर उन्मत चरित्रोंकी विडंबना करे हैं, अपने शरीरको खेदका कारण जो जगत की चेष्टा उससे जगत जीव सुख माने हैं इस जगतमें कई एक तो पराधीन चाकर होय रहे हैं कई एक आपको स्वामी मान तिनपर आज्ञा करे हैं जिनके वचन गवसे भरे हैं। धिकार है इस संसारको, जिसमें जीव दःख ही भोगे हैं अर दखहीको मुख मान रहे हैं तातें मैं जगत विषै सुखोंको तजकर तप सयमादि शुभ चेष्टा कर मोक्ष मुबकी प्राप्ति के अर्थ यत्न करू । यह विषय सुख क्षणभंगुर है अर कर्मके उदयसे उपजे है इसलिए कृत्रिम (नावटी) है इस भांति श्रीऋषभदेवका मन वैराग्य चिन्तवनमें प्रवरता तब ही लौकांतिक देव प्राय स्तुते करते भए कि हे नाथ ! तुमने भली विचारी । लोक्यमें कल्याणका कारण यही है, भरतक्षेत्रमें मोक्षका मार्ग विच्छेद भया था सो आपके प्रसादसे प्रवरतेगा, यह जीव तुम्हारे दिखाए मार्गसे लोकशिखर अर्थात् निर्वाणको प्राप्त होंगे, इस भांति लोकांतिक देव स्तुतिकर अपने थाम गये अर इंद्रादिक देव आयकर तपकल्याणकका समय साधते भये । रत्नजडित सुदर्शन नामा पालिकीमें भगवान को चढाया । कैसी है वह पालकी, कल्पवृक्षके फूलोंकी मालासे महा सुगन्धित है, अर मोतिनके हारोंसे शोभायमान है, भगवान उसपर चढकर घरसे बनको चले, नाना प्रकारके वादित्रोंके शब्द अर देवोंके नृत्यसे दशों दिशा शब्द रूप भई। इसप्रकार महा विभूति संयुक्त तिलकनामा
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