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१३.
तृतीय पर्व दहाड़ता हुआ बैल देखा जिसके बड़े बड़े कन्धे हैं । ३ तीसरे स्वप्नमें चन्द्रमाकी किरण समान सफेद केशोंवाला विराजमान सिंह देखा ४ चौथे स्वप्न में लक्ष्मीको हाथी सुवर्णके कलशों से स्नान कराबते देखे, वह लक्ष्मी प्रफुल्लित कमलपर निश्चल विष्ठे है : ५ पांचवें स्वप्नमें दो पुष्पोकी माला आकाशमें लटकती हुई देखीं जिनपर भ्रमर गुजार कर रहे हैं । ६ छठे स्वप्नमें उदयाचल पर्वतके शिखरपर तिमिरके हरणहारे मेघपटलरहित सूर्यकू देखा । ७ सातवें स्वप्नमें कुमुदिनीयो प्रफुल्लित करणहारा रात्रिका आभूषण जिसने किरणांसे दशोंदिशा उज्ज्वल करी हैं ऐसा तारों का पति चन्द्रमा देखा । ८ आठवें स्वप्न में निर्मल जलमें कलोल करते अत्यन्त प्रेमके भरे हुवे महा मनोहर मीन युगल (दो मच्छ) देखे । 8 नवमें स्वप्न में जिनके गलेमें मोतियोंके हार अर पुष्पोंकी माला शोभायमान है ऐसे पंच प्रकारके रत्नोंकर पूर्ण स्वर्णके कलश दखे अर १० दशवें स्वप्न में नाना प्रकार के पक्षियोंसे संयुक्त कमलोंकर मंडित सुन्दर सिवाण ( पौडी ) कर शोभित निर्मल जलकर भरा भहा सरोवर देखा । ११ ग्यारहवें स्वप्न में आकाशके तुल्य निर्मल समुद्र देखा जिसमें अनक प्रकारके जलचर केलि करें हैं अर उमङ्ग लहरें उठे हैं । १२ बारहवें स्वप्नमें अत्यंत ऊंचा नाना प्रकारके रन्नोंकर जड़िा स्वर्णका सिंहासन देखा । १३ तेरहवे स्वपमें देवताअ.के विमान आते देखे जो सुमेरुके शिखर समान अर रत्नोंकर मंडित चामरादिकसे शामिल हैं। अर १४ चौदहवें स्वप्न में धरणींद्रका भवन देखा कैसा है भवन ? जाके अनेक खण (मंजिल) हैं अर मोतियोंकी मालाकर मंडित रत्नोंकी ज्योतिकर उद्योत मानो कल्पवृक्षकर शोभित है। १५ पंद्रहवे स्वप्ने में पंच वर्णके महा रत्ननिकी राशि अत्यंत ऊंची देखी जहां परस्पर रत्नोंकी किरणों के उद्योतसे इन्द्रधनुप चह रहा है । १६ सोलह स्वप्न में निर्धम अग्नि ज्वालाके समूहकरि प्रज्वलित देखी । अथाननार सुन्दर हे दर्शन जिनिका ऐसे सोलह स्वप्न देखकर मंगल शब्दनि श्रवणकरि माता प्रयोग प्राप्त भई । तिन मंगल शब्दनिका कथन सुनहु ।
सखी जन कहे हैं-हे देवी ! तेरे मुखरूप चन्द्रमाकी कान्तित लज्जावान हुआ जो यह निशाकर (चन्द्रमा) सो मानो कांतिकर रहित हुआ है अर उदयाचल पर्वतके प्रस्तकपर सूर्य उदय होनेको सन्मुख भया है मानो मंगलके अर्थ सिंदूरसे लिप्त स्वर्णका कलश ही है अर तुम्हारे सुख की ज्योतिसे अर शरीरकी प्रभासे तिमिरका क्षय हुआ मानो इससे अपना उद्योत वृथा जान दीपक मंद ज्योति भये हैं अर ये पक्षियोंके समूह मनोहर शब्द करें हैं मानो तिहारे अर्थ मंगल • पढे हैं अर जो यह मन्दिरमें बाग हे तिनके वृक्षोंके पत्र प्रभातकी शीतल मंद सुगन्ध पवनसे हालें हैं अर मन्दिरकी वापिकाम सूपक बिम्बके विलोकनसे चकवी हर्षित भई मिष्ट शब्द करती संती चकवेको बुलाब हैं और यह हंस तेरी चाल देखकर अतिप्राभलाषावान हर्षित होय महामनाहर शब्द कर है अर सारसांक समूहका सुन्दर शन्द होय रहा है । इसलिये हे देवी! अब रात्रि पूर्ण भई तुम निद्राको तजो। यह शब्द सुनकर माता सेजसे उठी। कैसी हैं सेज ? बिखर रहे हैं कल्प वृक्के फूल भर मोती जाविषे, मानो वारानिकरि संयुक्त आकाश ही है।
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