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सृतीय पर्व दिक सवं ही कल्प वृक्षोंसे उपजे हैं अर भाजन ( वर्तन ) तथा वादित्रादि ( वाजे ) महा मनोहर सर्व ही कल्पवृक्षोंसे उपजे हैं यह कल्पवृत वनस्पति काय नहीं अर देवाधिष्ठित भी नहीं केवल पृथ्वीकाय रूप सार वस्तु हैं, तहां मनुष्यों के युगल ऐसे रमें हैं जैसे स्वर्ग लोकमें देव । या भांति गणथर देवने भोगभूमिका वर्णन किया।
___ आगै राजा श्रेणिक भोगभूमिमें उपजनेका कारण पूछते भए सो गणघर देव कहे हैं कि जैसे भले खेत में बोया बीज बहुतगुणा होकर फले है अर इक्षु में प्राप्त हुआ जल मिय्ट होय है अर गायने पिया जो जल सो दूध होय परिणमे है तैसे व्रतकरडिन परिग्रहरहित मुनिको दिया जो दान सो महा फल को फले है, जो सरलचित्त साधुको आहारादिक दान दे है ते भोगभूमिमें मनुष्य होय हैं अर जैसे निरस क्षेत्र में बोया बीज अल्प फल को प्राप्त होइ अर नींव में गया जल कटुक होय है तैसे ही भोग तृष्णासे जे कुदान कर हैं ते भोगभूमिमें पशु जन्म पावें हैं। भावार्थ-दान चार प्रकारका है एक आहार दान, दूजा औषधदान, तीजा शास्त्रदान चौथा अभयदान । तिसमें मुनि आर्यिका उत्कुष्ट श्रावकोंको भक्तिकर देना पात्रदान है अर गुणों कर
माप समान साधर्मीजनोंको देना समदान है अर दुखित जीवको दया भावकर देना करुणादान है : अर सब त्याग करके मुनित्रत लेना सकलदान है। ये दानके भेद कहे ।
जब वीजे कालमें पल्यका पाठयां भाग बाकी रहा तब कुलकर उपजे । प्रथम कुलकर प्रतिश्रुति भये तिनके वचन सुनकर लोक आनंदको प्राप्त भये वह कुलकर अपने तीन जन्मको जाने है पर उनकी चेष्टा सुन्दर है पर वह कर्म भूमिके व्यवहारक उपदेशक हैं अर तिनके पीछे सहस्र कोडि असंख्यात वर्ष गये दूजा कुलकर सन्मति भया तिनके पीछे तीसरा कुलकर क्षेमंकर चौथा क्षेमंथर पांचवां सीमकर छठा सीमंधर सातवां विमलवाहन पाठवां चक्षुष्मान् नवां यशस्वी दशवां अभिचंद्र ग्यारवां चंद्राभ बारहवां मरुदेव तेरहवा प्रसनजित चौदहवा नाभि राजा । यह चौदह कुलकर प्रजाके पिता समान महा बुद्धिमान शुभ कर्मसे उत्पन्न भये । जव ज्योतिरांग जातिके कल्पवृक्षोंकी ज्योति मंद भई अर चादसूर्य नजर आये जिनको देखकर लोग भयभीत भये । कुलकरको पूछते भये-हे नाथ ! यह आकाशमें क्या दीखे है तब कुलकरन कहा कि अव भोमभूमि समाप्त हुई कर्म भूमिका आगमन है । ज्योतिरांग जातिके कल्पवृक्षों की ज्योति मंद भाई है इसलिये चांदमूर्य नजर आए हैं। देव चार प्रकारके हैं। कल्पवासी भवनवासी व्यंतर अर ज्योतिषी । तिनमें चांद सूर्य ज्योतिषियोंके इंद्र प्रतींद्र हैं चन्द्रमा तो शीतकिरण है अर सूर्य उष्णकिरण हैं । जब सूर्य अस्त होय है तब चंद्रमा कांतिको धरे है अर आकाशविर्ष नक्षत्रोंके समूह प्रगट होय हैं सूर्यकी कान्तिसे नक्षत्रादि नहीं भासे हैं। इसी प्रकार पहिले कल्पवृक्षों की ज्योतिसे चन्द्रमा सूर्यादिक नहीं भासते थे अब कल्पवृक्षोंकी ज्योति मंद भई इसलिये. भासे है। यह कालका स्वभाव जानकर तुम भयको तजो यह कुलकरका बचन सुनिकर तिनका भय निवृत्त भथा। ... अथानंतर चौदहवें कुलकर श्रीनाभि.राजा जगत् पूज्य.तिनके समयमें सब ही कम्पपक्षों
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