________________
amamakadaia
दिरूप
पा-पराणे मण्डप बाय
' अनेक जात फल तिनका रस पीकर पक्षी सुखसों सोय रहे हैं, और दाखके र रहे हैं, नहीं वन विषै देव विहार करे हैं जहां खजूरको पथिक भक्षण करे हैं केला - फल रहे हैं। ऊंचे ऊंचे अरजुन वृक्षोंके वन सोहे हैं और नदीके तट गोकुल के शब्द से "नणीक हैं, नदियोंमें पनीके समूह किलोल करे हैं तरंग उठे हैं मानो नदी नृत्य ही करे हैं और हंसनिके मधुर शब्दों कर मानो नदी गान ही करे हैं, जहां सरोवरके तीरपर मारम क्रौटा करे हैं
और वस्त्र आमाण सुगंधादि सहित मनुष्योंके समूह तिष्ठे हैं, कमलोंके समूह रहे हैं और अनेक जीव क्रीडा करे हैं, हमोंके समूड उत्तम मनुष्योंके गुणों समान उज्ज्व सुन्दर शब्द सुन्दर चालवाले तिनकर वन धवल होय रहा है। जहां कोकिलोंका रमणीक शब्द भं रोका गुजार मोरोंके मनोहर शब्द सगीतकी ध्वनि बन मृदंगोंका बजना इनकर दशों दिवा रमणीक हो रही हैं और वह देग गुणन्त पुरुषोंसे भरा है, जहां दयावान शीलवान उदारचित्त तपस्वी त्यागी विवेकी प्राचारी लोग वसे हैं, मुनि विचरे हैं, आर्यिका विहार करे हैं उत्तम श्रारक, श्राविका वसे हैं । शरदकी पूर्णमामीके चन्द्रमा समान है चित्त की वृत्ति जिनकी मक्ताफल समान उज्वल है अानन्दके देनेहारे हैं; और वह दश बड़े बड़े गृहस्थीन कर मनोहा है कैसे हैं गृहस्थी कल्पवृक्ष समान हैं तृप्त कीये हैं अनेक पथिक जिन्होंने जहां अनेक शुभ ग्राम हैं जिनमें भले भले किसान बसे हैं और उस देशविप कस्तूरी कपूर्रादि मुगन्ध द्रा बहुत हैं और भांति भांतिके वस्त्र प्राभूपणों कर मण्डित नर नारी विचरे हैं मानी देव देवी ही हैं, जहां जैन वचन रूपी अंजन (सुरमा) से मिथ्यात्व रूपी दृष्टिविकार दूर होवे हैं और महा मुनियोंके ज्ञान रूपी अग्निसे पापरूपी बन भस्म होय है ऐसा धर्म रूपी महा मनोहर मगध देश बसे है।
___ मगध देशमें राजगृह नामा नगर महा मनोहर पुष्पों की बासकर महा सुगन्धित अनेक सम्पदा कर भरया है मानो तीन भवनका जीवन ही है और वह नगर इंद्रके नगर समान मन का मोहनेवाला है । इन्द्र के नगरम तो इन्द्राणी कुम्कुम कर लिप्त शरीर विचरे हैं और इस नगरमें राजाकी रानी सुगन्ध कर लित विचर है, महिषी ऐसा नाम रानीका है और मैं का भी है सो जहां मैंस भी केरकी क्यारी में लोटकर केसरसों लिप्त भई फिरे हैं और सुन्दर उज्ज्वल घरोंकी पंक्ति और टांचीनके घडे हुए सफेद पाषाण तिनसे मकान बने हैं मानो चन्द्रकांति मणिनका नगर बना है। मुनियों को तो वह नगर तपोवन भासे है, (मालूम होता है) वेश्याको काम मन्दिर, नृत्यकारनीको नृत्यका मन्दिर और बैरीको यमपुर है, सुभटको वीरका स्थान, याचकको चिंता. मणि, विद्यार्थीको गुरुगृह, गीत शास्त्रके पाठीको गंधर्व नगर, चतुरको सर्व कला (चतुराई) सीखनेका स्थान, और ठगको धूर्त का मन्दिर भासे है। संतनिको साधुओंका संगम, व्यापारीको लाभभूमि, शरणागतको बज्रपिंजर, नीतिके वेत्ताको नीतिका मन्दिर, कौतुकी (खिलारियों) को कौतुकका निवास, कामिनिको अप्सरोंका नगर, सुखीयाको आनन्दका निवास भासे है। जहां गजगामिनी शीलबंती व्रतवंती रूपवंती अनेक स्त्री हैं जिनके शरीरकी पद्मरागमणिकीसी प्रभा है और चन्द्रकांति मणि जैसा बदन है सुकुमार अंग है पतिव्रता है व्यभिचारीको अगम्य हैं गहा सौन्दर्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org