________________
-
.
देसरा पर्व
युक्त है। निरवचनः
" हैं चेष्टा जिन
पोलनहारा ह ार सदा हर्षरूप मनोहर है मुख जिनके और प्रमादरहित .
*.सामायिक प्रोषध प्रतिक्रमणकी करनहारी हैं। बत नेमादिविष सावधान है अन्न का शोधन र
'. अलका छानना यतिनको भक्तिले दान देना और दुखित भुखित जीवको दयाकर दान " स्यादि शुभ क्रियामें सावधान हैं जहां महामनोहर जिनमन्दिर हैं जिनेश्वरकी और सिद्धांत - घरचा ठौर ठौर है । एसा राजगृह नगर बसा है जिसकी उपमा कथनमें न श्रावे, स्वर्ग लोक तो केवल भोगहीका विलास है और यह नगर भोग और योग दोनों हीका निवास है जहां 'पर्वत समश्च तो ऊंचा कोट है और महागम्भीर खाई है जिसमें वैरी प्रवेश नहीं कर सकते ऐसा देवलोक सभान शोभायमान राजगृह नगर बसे हैं ।।।
__राजगृह नगर में राजा श्रेणिक राज्य करे है जो इन्द्र समान विख्यात है। बड़ा योद्धा कल्याणरूप है प्रकृति जिलकी, कल्याण ऐसा नाम स्वर्णका भी है और मंगलका भी है । सुमेरु सो सुवर्ण रूप है और राजा कल्याण रूप है, वह राजा समुद्र समान गम्भीर है मर्यादा उलं. घनका है भय जिसको, कलाके ग्रहण में चन्द्रमाके समान है, प्रतापमें सूर्य समान है, धन सम्पदा में कुवेरके समान है, शूरवीरपने में प्रषिद्ध है लोकका रक्षक है महा न्यायवंत है लक्ष्मीका पूर्ण है, गर्वसे दूषित नहीं सौ शत्रुओंका विजय कर बैठा है तथापि शस्त्र (हथियार) का अभ्यास रखता है और जे पापपे नत्राभूा भये हैं तिनके मानका बहावनहारा हैं जे आपते कठोर है तिनके मानका छेदनहारा है और आपदा विष उद्धगचित नहीं सम्पदाविष मदोन्मच नहीं जिसकी निर्मज्ञ साधु प्रोंमें रत्न बुद्धि है और रत्नके विप पापाणबुद्धि है जो दानयुक्त क्रियामें बड़ा सावधान है और ऐसा सामन्त है कि मदोन्मत्त हाथीको कीट समान जाने है और दीन पर दयालु है जिसको जिन शासनमें परम प्रीति है धन और जीतव्यमें जीर्ण तृण समान बुद्धि है दशों दिशा व । करी हैं प्रजाके प्रतिपालनमें सावधान है और स्त्रियोंको घमेकी पुतलीके समान देखे है धनको रज सभान गिने है गुणनकर नम्रीभूत जो धनुप ताहीका अपना सहाई जाने है चतुरंग सेनाको केवल शोभारूप माने है (भावार्थ) अपने बल पराक्रममे गज करे है जिसके राजमें पवन भी वस्त्रादिकता हरण नहीं करे तो ठा चोगेको मान ? जिसके राजनें क्रूर पशु भी मिलान करते भये ना मनुष्य हिंसा कैसे करे, यद्याप राजा श्रोणि कसे वासुदेव बड़े होते हैं परन्तु उन प कहिए वृपासुरका पराभव किया है और यह राजा श्रेणिक वृक्ष कहिए धर्म ताका प्रतिपालक है इसीलिए उनसे श्रेष्ठ है और पिनाकी अर्थात् शकर उन राजा दक्षके गर्व को आताप लिया और यह राजा श्रेणिक दक्ष अर्थात् चतुर पुरुषाका अानन्दकारी है इसलिये शंकरमे भी अधिक है और इन्द्रके वंश नहीं यह वंश कर विस्तीर्ण है पर दक्षिण दिशाका दिपाल जो यम सो कठोर है राजा कोमल चित है और पश्चिम दिशाका दिग्पाल जो वरुण सो दुष्ट जलचरोंका अधिपति है इसके दुष्टोंका अधिकार ही नाहीं पर उत्तर दिशाका अधिपति जो कुवेर, वह धनका रक्षक है यह धनका त्यानी है और बौद्धके समान क्षणिकमती नहीं चन्द्रमाकी न्याई कलंकी नहीं । राजा श्रेणिक सर्वोत्कृष्ट है जिसके त्यागका अर्थी पार न पावें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org