________________
१२
पद्म-पुराण
जिसकी बुद्धिका पार पण्डित न पावते भए शूरवीर जिसके साहसको पार न पावते भये जिसकी कीर्ति दश दिशामें विस्तरी है जिसके गुणनकी संख्या नहीं सम्पदाका क्षय नहीं सेना बहुत, बड़े बड़े सामंत सेवा करे हैं हाथी घोड़े रथ पयादे सच ही राजाका ठाठ सबसे अधिक है और पृथ्वीविषै प्राणीका चित्त जिससे अतिअनुरागी होता भया जिसके प्रतापका शत्रु पार न पावते ये सर्व कलाविषै प्रवीण है इसलिए हम सारखे पुरुष वाके गुण कैसे गा सकें जिसके क्षायक सम्यक्त्व की महिमा इन्द्र अपनी सभा विषै सदा ही करे है वह राजा मुनिराज के समूहमें वेतकी लताके समान नत्रीभूत है और उद्धत वैरीको वज्र दण्ड से वश करनेवाला है जिसने अपनी भुजाओंसे पृथ्वीकी रक्षा करी है कोट खाई तो नगरकी शोभामात्र हैं । जिनच त्यालयोंका करानेवाला जिन पूजका करानेवाला जिसके चेलना नामा रानी महा पतिव्रता शीलवन्ती गुणवन्ती रूपवन्ती कुलवन्ती शुद्ध सम्यग्दर्शनकी धरनेवाली श्रावकके व्रत पालनेवाली सर्व कला में निपुण उसका वर्णन कहांलग कहैं ऐसा उपमा कर रहित राजा श्रेणिक गुणोंका समूह राजगृह नगर में राज करे है ।।
आगे अन्तिम तीर्थंकरका समवशरणका आगमन जानि श्रेणिक उठाइसहित भए, ताका वर्णन करिये हैं
एक समय राजगृह नगर के समीप विपुलाचल पर्वतके ऊपर भगवान महावीर अंतिम तीर्थंकर समोशरण सहित आय विराजे तब भगवानके आगमनका वृत्तांत वनपालने जानकर राजा से कहा और छहों ऋतुओं के फल फूल लाकर आगे धरे तत्र राजाने सिंहासन से उठकर सात पैंड पर्वतके सम्मुख जाय भगावन्को अष्टांग नमस्कार किया और बनपालको अपने सर्व आभरण उतारकर पारितोषिकमें देकर भगवान् के दर्शनोंको चलनेकी तैयारी करता भया ।
श्रीवर्द्धमान भगवान के चरणकमल सुर नर असुरोंसे नमस्कार करने योग्य हैं गर्भ कल्याणकविषै छप्पन कुमारियोंने शोधा जो माताका उदर उसमें तीन ज्ञानसंयुक्त अच्युत स्वर्ग से आय विराजे हैं। और इन्द्रके आदेश से धनपतिने गर्भ में यावनेसे छह मास पहिलेसे रत्नवृष्टि करके जिनके पिताका घर पूरा है और जन्म कल्याणक में सुमेर पर्वतके मस्तकपर इन्द्रादि देवोंने क्षीरसागर के जल कर जिनका जन्माभिषेक किया है और धरा है महावीर नाम जिनका और बाल अवस्था में इन्द्रने जो देवकुमार रखे तिन सहित जिन्होंने क्रीडा करी है और जिनके जन्ममें माता पिताको तथा अन्य समस्त परिवारको और प्रजाको और तीन लोकके जीवोंको परम आनन्द हुआ नारकियों का भी त्रास एक मुहूरतके वास्ते मिट गया जिनके प्रभावसे पिताके बहुत दिनोंके विरोधी जो राजा थे वह स्वयमेव ही आय नम्रीभूत भये और हाथी घोड़े रथ रत्नादिक अनेक प्रकारके भेट किये और छत्र चमर बाहनादिक तज दीन हो हाथ जोड़कर पावोंमें पड़े, और नाना देशोंकी प्रजा आयकर निवास करती भई । जिन भगवानका चित्त भोगों में रत न हुआ जैसे सरोवर में कमल जलसे निर्लेप रहे तैसे भगवान् जगतकी मायासे अलिप्त रहे । वह भगवान स्वयंबुद्ध बिजली के चमत्कारवत् जगतकी मायाको चंचल जान वैरागी भये, और
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International