Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 15
________________ ar mona पद्मपुराण बता है, जिनको अतिवीर कहिये वा महावीर कहिये है । रामचरित्रके कारण श्रीमहावीर स्वामी हैं ताते प्रथम ही तिनका कथन कीजिये है। विपुलाचल पर्वतके शिखर पर समोसरणविौ श्रीवर्द्धमान स्वामी विराजे । तहां श्रेणिकराजा गाँतमस्वामीसों प्रश्न करते भये । कैसे हैं गौतम स्वामी, भगवानके मुख्य गणधर हैं, महा महंत हैं, जिनका इंद्रभूति भी नाम है। . आगे श्रीगौतम स्वामी कहै हैं तहां प्रश्न विष प्रथम ही युगनिका कथन हैं। बहुरि कुलकरनिकी उत्पत्ति, अकस्मात् चन्द्र सूर्यके अवलोकनतें जुगलियानिकू भयका उपजना, सो प्रथम कुलकर प्रतिश्रुतके उपदेशनै भयका दूर होना, बहुरि नाभिराजा अन्तके कुलकर तिनके घर श्रीऋषभदेवका जन्म, सुमेरु पर्वतविष इंद्रादिक देवनिकरि जन्माभिषेक, बहुरि वाललीला अर राज्याभिषेक, कल्प वृक्षनिके वियोग करि उपज्या प्रजानिकू दुःख सो कर्मभूमिकी विधिक बतावने करि दूर होना बहुरि भगवानका वैर ग्य, केवलोत्पत्ति समोसरनकी रचना, जीविनकू थर्मोपदेश बहुरि भगवानका निर्वाणगमन, भरत चक्रवर्ती अर बाहुबलिके परस्पर युद्ध, बहुरि विप्रनिकी उत्पत्ति, इक्ष्वाकु आदि वंशनिका कथन, विद्याधरनिका वर्णन, तिनके वंशविष राना विद्यष्ट्रका जन्म संजयंत स्वामीकू विद्युदंष्ट्रने उपसर्ग किया सो उपसर्ग सहि करि अंतकृत केवली होड़ करि निर्वाण गये विद्युदंष्ट्रने उपसर्ग काया यह जाति धरणोंद्रने तामू कोप कीया, ताकी विद्या छेद करी वहुरि श्री अजितनाथ स्वामी का जन्म, पूर्णमेघ विद्याधर भगवानके सरणी आया। राक्षस द्वीपका स्वामी व्यन्तर देव, तान प्रसन्न होइ पूर्णमेष राक्षस द्वीप दिया । वहुरि सगर चक्रवर्तीकी उत्पचिका कथन, पुत्रनिके दुःखकरि दीक्षा ग्रहण पर मोक्ष प्राप्ति, पूर्णमेषके वंशविर्ष महारचका जन्म, अर वानरवंशी विद्याधरनिकी उत्पत्तिका कथन, बहुरि विद्युत्केश विद्याधरका चरिख, बहुरि उदधिविक्रम अर अमरविक्रम विद्याधरका कथन, वानरवंशीनिक किषकिंथापुरका निवास अरअंधक विद्याधरका कथन, श्रीमाला विद्याधरी का संयम, विजयसंघके मरणते अशनिवेमके क्रोथका उपजना और सुकेशीके पुत्रनिका लंका श्रावने का निरूपण, निर्धात विद्याधरके रखतें माली नाम विद्याधर रावणके दादेका वडा भाइ, ताके संपदाकी प्राप्तिका कथन, अर विजवार्थकी दक्षिणकी श्रेणीविषे रथनूपुर नगर में इंद्रनामा विद्याधरका जन्म, इंद्र सर्व विद्याधरनिका अधिपति है। इंद्रके अर मालीके युद्धविष मालीका मरण अर लंकाविर्ष इंद्रका राज्य पर श्रषव नामी विद्याधरका थारों रहना अर सुमालीके पुत्र रत्नश्रवाका पुष्पांतक नामा नगर वसावना भर केकसीका परणना अर केकसीके शुभस्वप्नका अवलोकन, रावणका जन्म अर विद्यानिका सावन विद्यानिके साधनविष अनावृत देव ओया विघ्न कीया तहां रावणका अचल रहना बहुरि विधा सिद्ध होना भर अनावृत देवका वश होना, अपने नगर आय माता पिता मिलना, काम अपने पिताका पिता जो सुमाली, ताकू बहुत आदरसों बुलावना, बहुरि मंदोदरीका राषक्सों विवाह और बहुत राजनिकी कन्या का ब्याहना, कुम्भकरणका चरित्र, वैश्रवसका कोष बच सक्षस कहावे असे विद्याथर तिनका बड़ा संग्राम, वैश्रवणका भागना बहुरि तप कस्ब र रात्रसका लंकामें कुटुम्ब सहित आवना अर सर्व राक्षसनिक धीरज बधावना मर और और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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