Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 13
________________ Animammnamamani पद्मपुराण निज वास देवो और संसार के मूल जो रागादि मल तिनसे अत्यंत दर ऐसे तेरहवें श्रीविमलनाथ देव ते हमारे कलंक हरो और अनंत ज्ञान के धरनहारे सुन्दर है दर्शन जिनका ऐसे चौदहवे श्री अनंतनाथ देवाधिदेव हमको अनंत ज्ञानकी प्राप्ति करो। और धर्मकी धुराके धारक पंद्रहवें श्रीधर्मनाथ स्वाभी हमारे अधर्मको हरकर परम धर्मकी प्राप्ति करो और जीते हैं ज्ञानाचरणादिक शत्रुजिन्होंने ऐसे श्रीशांतिनाथ परम शांत हमको शांतभावकी प्राप्ति करो। और कुथु आदि सर्व जीवोंके हितकारी सतरहवें श्रीकुथुनाथ स्वामी हमको भ्रमरहित करो। समस्त क्लेशसे रहित मोक्षक मूल अनन्त सुखके भण्डार अठारहवें :श्रीअरनाथ स्वामी कर्मरजरहित करो । संसारके तारक मोह मल्लके जीतनहारे वाह्याभ्यन्तर मलरहित ऐसे उन्नीसवें श्रीमल्लिनाथ स्वामी ते अनंत वीर्यकी प्राप्ति करो और भले व्रतोंके उपदेशक समस्त दोषोंके बिदारक वीसवें श्रीमुनिसुव्रतनाथ जिनके तीर्थविषे श्रीरामचन्द्रका शुभचरित्र प्रगट भया ते हमारे अव्रत मेट महावतकी प्राप्ति करो। और मम्रीभूत भये हैं सुर नर असुरोंके इन्द्र जिनको ऐसे इक्कीसवें श्रीनमिनाथ प्रभु ते हमकों निर्वाणकी प्राप्ति करो । और समस्त शुभकर्म तेई भये अरिष्ट तिनके काटिवेकू चक्रकी धारा समान वाईसवें श्रीअरिष्ट नेमि भगवान् हरिवंशके तिलक श्रीनेमिनाथ स्वामी ते हमको यम नियमादि अष्टांग योगकी सिद्धि करो और तेइसवें श्रीपार्श्वनाथ देवाधिदेव इन्द्र नागेन्द्र चन्द्र सूर्यादिक कर पूजित हमारे भव संताप हरो । और चौवीसवें श्रीमहावीर स्वामी जो चतुर्थकालके अंत में भये हैं ते हमारे महा मंगल करो। और भी जो गणधरादिक महामुनि तिनको मन वचन काय कर' यारम्बार नमस्कार कर श्री रामचन्द्रके चरित्रका व्याख्यान करू हूँ । कैसे हैं श्रीराम लक्ष्मीकर आलिंगित है हृदय जिनका और प्रफुल्लित है मुखरूपी कमल जिनका महापुण्याधिकारी हैं 'महावुद्धिमान हैं गुणनके मंदिर उदार है चरित्र जिनका, जिनका चरित्र केवलज्ञानके ही गम्य है ऐसे जो श्रीरामचन्द्र उनका चरित्र श्रीगणवरदेव ही किंचित् मात्र कहनेको समर्थ हैं । यह बड़ा आश्चर्य है कि-जो हम सारिखे अल्पबुद्धि पुरुष भी उनके चरित्रको कहें हैं यद्यपि हम सारिखे इस चरित्रको कहनेको समर्थ नहीं तथापि परंपरासे महामुनि जिस प्रकार कहते आये हैं उनके कहे अनुसार कुछइक संक्षेपता कर कहे हैं जैसे जिस मागविष मदमाते हाथी चालें तिस मार्ग विषे मृग भी गमन करे हैं और जैसे युद्धविष महा सुभट आगे होय कर शस्त्रपात करे हैं तिनके पीछे और भी: पुरुष रणविष जाय हैं अर सूर्य करि प्रकाशित जे पदार्थ तिनकू नेत्रवारे लोक सुखस देखे हैं और जैसे बजमूचीके मुख कर भेदी जो मणि उस विष सूत्र भी प्रवेश करे हैं तैसे ज्ञानीनकी पंकतिकर भाषा हुआ चला आया जो रामसम्बन्धी चरित्र ताके कहनेको भक्त कर प्रेरी. जो हमारी अल्प बुद्धि सो भी उद्यमबती भई है। बड़े पुरुषके चितवन कर उपजा जो पुण्य वाके प्रसाद कर हमारी शक्ति प्रकट भई है । महा पुरुषनके यशकीत नसे बुद्धिकी वृद्धि होय है. और यश अत्यन्त निर्मल होय है और पाप दूर जाय है । यह प्राणीनका शरीर अनेक रोगोंकर. भरा है इसकी स्थिति अल्प काल है और सत्पुरुषनकी कथा कर उपजाया जो यश सो जब तक . चांद सूर्य है तब तक रहे है. इसलिए जो आत्मवेदी पुरुष हैं वे सर्व यत्नकर . महापुरुषनकं यश: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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