Book Title: Padma Puranabhasha
Author(s): Daulatram Kasliwal
Publisher: Shantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha

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Page 10
________________ श्री खवचन्द्र-प्यारी देवी वाकलीवाल स्मारक पर PE जैन ग्रन्थमाला पुष्प नं०२ श्री वीतरागाय नमः। अथ पइमपुराण भाषा वचनिका EEEEEEEEEE स्वर्गीय विद्वद्वर्य पण्डित दौलतरामजी कृत । मंगलाचरण दोहा । चिदानन्द चैतन्यके गुण अनन्त उरधार । भाषा पद्मपुराणकी, भाषू श्रुति अनुसार ॥१॥ पंच परमपद प्रणमि, प्रणमि जिनेश्वरबानि । नमि जिन प्रतिमा जिन भवन, जिन मारग उरानि ऋषभ अजित संभव प्रणमि, नमि अभिनन्दन देव । सुमति जु पद्म सुपाश्व नमि, करि चन्द्रप्रभुसेव पुष्पदंत शीतल प्रणमि, श्रीश्रेयांसको ध्याय । वासुपूज्य विमलेश नमि, नमि अनंतके पाय॥४ धर्म शान्ति जिन कुन्थु नमि, और मल्लि यश गाय । मुनिसुव्रत नमि नेमि नमि, नमि पारसके पाय बर्द्धमान वरवीर नमि, सुगुरुवर मुनि बंद । सकल जिनंद मुनिंद नमि, जैनधर्म अभिनन्द ॥६ निर्वाणादि अतीत जिन, नमो नाथ चौवीस । महापद्म परमुख प्रभू, चौबीसों जगदीश ॥७॥ होंगे तिनको बंदिकर, द्वादशांग उरलाय । सीमन्धर आदिक नमू, दश दूने जिनराय ॥८॥ विहरमान भगवान ये, क्षेत्र विदेह मझारि । पूजें जिनको सुरपती, नागपती निरधार ॥३॥ द्वीप अढाईके विष, भय जिनेन्द्र अनंत । होंगे केवल ज्ञानमय, नाथ अनंतानंत ॥१०॥.. सबको बंदन कर सदा, गणधर मुनिवर ध्याय । केवली श्रुतिकेवला, नमूं प्राचाय उवझाय॥११ बंदू शुद्ध स्वभावको धर सिद्धनको ध्यान । संतनको परणाम कर, नमि हग व्रत निज ज्ञान॥ १२ शिवपुरदायक सुगुरु नमि, सिद्धलोक यश गाय । केवल दर्शन ज्ञानको पूजू मन वच काय ॥१३ यथाख्यात चारित्र अरु, क्षपक श्रेणि गुण ध्याय । धर्म शुक्ल निज ध्यानकी, बंदू भाव लगाय उपशम वेदक क्षायका, सम्यग्दर्शन सार । कर बंदन समभावको, पूजू पंचाचार ॥१५॥ मूलोत्तर गुण मुनिनके, पंच महाग्रत आदि । पंच सुमात ओर गुप्तित्रय, ये शिवमूल अनादि ॥१६ अनित्य आदिक भावना, सेऊ चित्त लगाय। अध्यातम आगम नमू, शालिभाव उरलाय ॥ . अनुप्रेक्षा द्वादश महा, चितवें श्रीजिनराय। तिन स्नुति करि भावसों, पीडश कारण ध्याय ।। १८ दश लक्षणमय धर्मकी, धर सरधा मन माहेि । जीवदया सत शील तप, जिनकर पाप नसाहि तीर्थकर भगवानके पूजू पंच कल्याण । और केवलिनको नमू केवल अरु निर्वाण ॥ २०॥ श्रीजिनतीरथ क्षेत्र नमि, प्रणमि उभय विधि धर्म । थुतिकर चहु विधि संवकी, तनकर मिथ्या भर्म चंद् गौतम स्वामिके, चरणकमल सुखदाय । वंदू धर्म मुनीन्द्रको, जम्बू कवलि ध्याय ॥२२॥ भद्रबाहुको कर प्रणति, भद्रभाव उरजाय । बंदि सनाधि सुत्रको, ज्ञानाने गुणगाय ।। २३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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