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न्याय-दीपिका
उदाहरण, हेत्वाभासोंका वर्णन, उदाहरण,उदाहरणाभास,उपनय, उपनयाभास, निगमन, निगमनाभास आदि अनुमान के परिवार का अच्छा कथन किया गया है। अन्तमें आगम और नयका वर्णन करते हुए अनेकान्त तथा सप्तभंगीका भी संक्षेप में प्रतिपादन किया गया है। इस तरह यह न्यायदीमिकामें वर्णित विषयोंका स्थूल एवं बाह्य परिचय है । अब उसके आभ्यन्तर प्रमेय-भागपर भी थोड़ासा तुलनात्मक विवेचन कर देना हम उपयुक्त समझते हैं। ताकि न्यायदीपिका के पाठकों के लिए उसमें चर्चित ज्ञातव्य विषयों का एकत्र यथासम्भव परिचय मिल सके।
(घ) विषय-परिचय१ मङ्गलाचरण
मंगलाचरणके सम्बन्ध में कुछ वक्तव्य अंश तो हिन्दी अनुवाद के प्रारम्भ में कहा जा चुका है। यहाँ उसके शेष भाग पर कुछ विचार किया जाता है।
__यद्यपि भारतीय वाङ्मयमें प्रायः सभी दर्शनकारोंने मंगलाचरणको अपनाया है और अपने अपने दृष्टिकोणसे उसका प्रयोजन एवं हेतु बताते हुए समर्थन किया है। पर जैनदर्शनमें जितना विस्तृत, विशद और सूक्ष्म चिन्तन किया गया है उतना प्रायः अन्यत्र नहीं मिलता। तिलोयपण्णत्ति' में यतिवृषभाचार्यने और 'धवला' में श्री वीरनसस्वामी ने मंगलका बहुत ही सांगोपांग और व्यापक वर्णन किया है। उन्होंने धातु, निक्षेप, नय, एकार्थ, निरुक्ति और अनुयोग के द्वारा मंगल का निरूपण करनेका निर्देश करके उक्त छहों के द्वारा उसका व्याख्यान किया है । 'मगि' धातुसे 'अलच्' प्रत्यय करनेपर मंगल शब्द निष्पन्न होता है। निक्षेपकी अपेक्षा कथन करते हुए लिखा है कि तद्व्यतिरिक्त द्रव्य मंगलके दो
१ तिलो० प० गा० १-८ से १-३१, २ धवला १-१ ।