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न्याय-दीपिका
अनेकान्तात्मकता वस्तु में अबाधितरूप से प्रतीत होती है और इस. लिए वह बौद्धादिकल्पित सर्वथा एकान्त के अभाव को अवश्य सिता करती है।
शङ्का—यह अनेकान्तात्मकता क्या है, जिसके बल से वस्त में 5 सर्वथा एकान्त के प्रभाव को सिद्ध किया जाता है ?
समाधान-सभी जीवादि वस्तुओं में जो भाव-अभावरूपता, एकअनेकरूपता और नित्य-अनित्यरूपता इत्यादि अनेक धर्म पाये जाते हैं। उसी को अनेकान्तात्मकता अथवा अनेकान्तरूपता कहते हैं। इस तरह
विधिरूप हेतु का दिग्दर्शन किया। 10 प्रतिषेधरूप हेतु के भी दो भेद हैं- १ विधिसाधक और
२ प्रतिषेधसाधक । उनमें विधिसाधक का उदाहरण इस प्रकार है'इस जीव में सम्यक्त्व है, क्योंकि मिथ्या अभिनिवेश नहीं है।' यहाँ 'मिथ्या अभिनिवेश नहीं है। यह प्रतिषेधरूप हेतु है और वह
सम्यग्दर्शन के सद्भाव को साधता है, इसलिए वह प्रतिषेधरूप विधि15 साधक हेतु है।
दूसरे प्रतिषेधरूप प्रतिषेधसाधक हेतु का उदाहरण यह है'यहाँ धुआँ नहीं है, क्योंकि अग्नि का अभाव है।' यहाँ 'अग्नि का प्रभाव' स्वयं प्रतिसेधरूप है और वह प्रतिषेधरूप ही धूम के
प्रभाव को सिद्ध करता है, इसलिए 'अग्नि का अभाव' प्रतिषेध20 रूप प्रतिषेधसाधक हेतु है। इस तरह विधि और प्रतिषेधरूप से
दो प्रकार के हेतु के कुछ प्रभेदों का उदाहरण द्वारा वर्णन किया। विस्तार से परीक्षामुख से जानना चाहिए। इस प्रकार पूर्वोक्त लक्षण वाले ही हेतु साध्य के गमक हैं, अन्य नहीं। अर्थात्-जो
अन्यथानुपपत्ति लक्षण वाले नहीं हैं वे साध्य के गमक नहीं हैं, क्योंकि 25 वे हेत्वाभास हैं।