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न्याय - दीपिका
सामान्य के मानने में उपर्युक्त कोई भी दूषण नहीं श्राता है। विशेष भी सामान्य की ही तरह 'यह स्थूल घट है' 'यह छोटा है' इत्यादि व्यावृत्त प्रतीति का विषयभूत घटादि व्यक्तिस्वरूप ही है । इसी बात को भगवान् माणिक्यनन्दि भट्टारक ने भी कहा है कि - "वह अर्थ 5 सामान्य और विशेषरूप है ।"
उसके दो भेद हैं- १ श्रर्थभविष्य के उल्लेख
परिणमन को पर्याय कहते हैं। पर्याय और २ व्यञ्जनपर्याय । उनमें भूत और रहित केवल वर्तमानकालीन वस्तुस्वरूप को अर्थ पर्याय कहते हैं अर्थात् वस्तुत्रों में प्रतिक्षण होने वाली पर्यायों को अर्थपर्याय कहते हैं । 10 आचार्यों ने इसे ऋजुसूत्र नय का विषय माना है । इसी के एक देश को मानने वाले क्षणिकवादी बौद्ध हैं । व्यक्ति का नाम ब्यञ्जन है, और जो प्रवृत्ति - निवृत्ति में कारणभूत जल के ले श्राने श्रादिरूप अर्थक्रियाकारिता है वह व्यक्ति है, उस व्यक्ति से युक्त पर्याय को व्यंजनपर्याय कहते हैं । अर्थात् जो पदार्थों में प्रवृत्ति और 15 जलानयन श्रादि अर्थक्रिया करने में समर्थ पर्याय है कहते हैं । जैसे- मिट्टी आदि का पिण्ड, स्थास कोश, कपाल आदि पर्याय हैं ।
निवृत्ति जनक
उसे व्यंजन पर्याय
कुशूल, घट और
जो सम्पूर्ण द्रव्य में व्याप्त होकर रहते हैं और समस्त पर्यायों के साथ रहने वाले हैं उन्हें गुण कहते हैं । और वे वस्तुत्व, रूप, 20 गन्ध और स्पर्श आदि हैं । अर्थात् वे गुण दो प्रकारके हैं- १ सामान्यगुण और २ विशेषगुण । जो सभी द्रव्यों में रहते हैं वे सामान्य गुण हैं और वे वस्तुत्व, प्रमेयत्व श्रादि हैं। तथा जो उसी एक द्रव्य में रहते हैं वे विशेषगुण कहलाते हैं । जैसे - रूप- रसादिक । मिट्टी के साथ सदैव रहने वाले वस्तुत्व व रूपादि तो पिण्डादि पर्यायों के साथ भी 25 रहते हैं, किन्तु पिण्डादि स्थासादिक के साथ नहीं रहते हैं । इसी