________________
१७२
न्याय-दीपिका
इस तरह इन दो कारिकारों के द्वारा पराभिमत तत्त्व में बाधा और स्वाभिमत तत्त्व में अबाधा इन्हीं दो के समर्थन को लेकर 'भावैकान्ते' इस कारिका के द्वारा प्रारम्भ करके 'स्यात्कारः सत्यलाञ्छनः'
इस कारिका तक प्राप्तमीमांसा की रचना की गई है। अर्थात् - 5 अपने द्वारा माने गये तत्त्व में कैसे बाघा नहीं है ? और एकान्तवादियों
के द्वारा माने तत्व में किस प्रकार बाधा है ? इन दोनों का विस्तृत विवेचन स्वामी समन्तभद्र ने 'प्राप्तमीमांसा' में 'भावैकान्ते' इस कारिका ह से लेकर 'स्यात्कारः सत्यलाञ्छनः' इस कारिका ११२ तक किया है।
अतः यहाँ और अधिक विस्तार नहीं किया जाता। ___10 इस प्रकार अतीन्द्रिय केवलज्ञान अरहन्त के ही है, यह सिद्ध
हो गया। और उनके वचनों के प्रमाण होने से उनके द्वारा प्रतिपादित अतीन्द्रिय अवधि और मनःपर्ययज्ञान भी सिद्ध हो गये। इस तरह अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष निर्दोष (निधि) है—उसके मानने में कोई दोष या
बाधा नहीं है। अतः प्रत्यक्ष के सांव्यवहारिक और पारमार्थिक ये दो ___15 भेद सिद्ध हुये।
इस प्रकार श्रीजैनाचार्य धर्मभूषण यति विरचित न्यायदीपिकामें प्रत्यक्ष प्रमाणका प्रकाश करनेवाला पहला प्रकाश
पूर्ण हुआ।