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दूसरा प्रकाश
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सर्वज्ञता को अवश्य सिद्ध करती है। और यह निर्दोषता अरहन्त परमेष्ठी में उनके युक्ति और शास्त्र से अविरोधी वचन होने से सिद्ध होती है। युक्ति और शास्त्र से अविरोधी वचन भी उनके द्वारा माने गये मुक्ति, संसार और मुक्ति तथा संसार के कारण तत्त्व और अनेकधर्मयुक्त चेतन तथा अचेतन तत्त्व के प्रत्यक्षादि प्रमाण से : बाधित न होने से अच्छी तरह सिद्ध होते हैं। तात्पर्य यह कि अरहन्त के द्वारा उपदेशित तत्त्वों में प्रत्यक्षादि प्रमाणों से कोई बाधा नहीं आती है। अतः वे यथार्थवक्ता हैं। और यथार्थवक्ता होने से निर्दोष हैं। तथा निर्दोष होने से सर्वज्ञ हैं।
शङ्का-इस प्रकार अरहन्त के सर्वज्ञता सिद्ध हो जाने पर भी 10 वह अरहन्त के ही हैं, यह कैसे ? क्योंकि कपिल श्रादि के भी वह सम्भव है ?
समाधान-कपिल आदि सर्वज्ञ नहीं हैं; क्योंकि वे सदोष हैं। और सदोष इसलिए हैं कि वे युक्ति और शास्त्र से विरोधी कथन करने वाले हैं। युक्ति और शास्त्र से विरोधी कथन करने वाले भी 15 इस कारण है कि उनके द्वारा माने गये मुक्ति आदिक तत्त्व और सर्वथा एकान्त तत्त्व प्रमाण से बाधित हैं। अतः वे सर्वज्ञ नहीं हैं। अरहन्त ही सर्वज्ञ हैं। स्वामी समन्तभद्र ने ही कहा है- "हे अर्हन् ! वह सर्वज्ञ आप ही हैं, क्योंकि आप निर्दोष हैं। निर्दोष इसलिये हैं कि युक्ति और आगम से आपके वचन अविरुद्ध हैं-युक्ति तथा आगम से 20 उनमें कोई विरोध नहीं आता। और वचनों में विरोध इस कारण नहीं है कि आपका इष्ट ( मुक्ति आदि तत्त्व ) प्रमाण से बाधित नहीं है। किन्तु तुम्हारे अनेकान्त मतरूप अमृत का पान नहीं करने वाले तथा सर्वथा एकान्त तत्त्व का कथन करने वाले और अपने को प्राप्त समझने के अभिमान से दग्ध हुए एकान्तवादियों का इष्ट (अभि- 25 मत तत्त्व) प्रत्यक्ष से बाधित है।"