Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 331
________________ तीसरा प्रकाश इन दो अवयवों के साथ उदाहरण, उपनय तथा निगमन इस तरह पाँच अवयव कहते हैं । जैसा कि वे सूत्र द्वारा प्रकट करते हैं :__ "प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमानान्यवयवाः” [न्यायसू० १।१।३२] अर्थात्-प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन ये पाँच अवयव हैं । उनके वे लक्षणपूर्वक उदाहरण भी देते हैं—पक्ष के प्रयोग 5 करने को प्रतिज्ञा कहते हैं । जैसे—यह पर्वत अग्नि वाला है। साधनता (साधनपना) बतलाने के लिए पञ्चमी विभक्ति रूप से लिङ्ग के कहने को हेतु कहते हैं। जैसे- क्योंकि धूमवाला है। व्याप्ति को . दिखलाते हुए दृष्टान्त के कहने को उदाहरण कहते हैं। जैसे- जो जो धूमवाला है वह वह अग्निवाला है । जैसे-रसोई का घर । यह साधर्म्य 10 उदाहरण है। जो जो अग्निवाला नहीं होता वह वह धूमवाला नहीं होता। जैसे-तालाब । यह वैधर्म्य उदाहरण है। उदाहरण के पहले भेद में हेतु की अन्वयव्याप्ति ( साध्य की मौजूदगी में साधन की मौजूदगी ) दिखाई जाती है और दूसरे भेद में व्यतिरेकव्याप्ति (साध्य की गैर मौजूदगी में साधन की गैर मौजूदगी) बतलाई 15 जाती है। जहाँ अन्वयव्याप्ति प्रदर्शित की जाती है उसे अन्वय दृष्टान्त कहते हैं और जहाँ व्यतिरेकव्याप्ति दिखाई जाती है उसे व्यतिरेक दृष्टान्त कहते हैं। इस प्रकार दृष्टान्त के दो भेद होने से दृष्टान्त के कहने रूप उदाहरण के भी दो भेद जानना चाहिए। इन दोनों उदाहरणों में से किसी एक का ही प्रयोग करना पर्याप्त 20 (काफी) है, अन्य दूसरे का प्रयोग करना अनावश्यक है। दृष्टान्त की अपेक्षा लेकर पक्ष में हेतु के दोहराने को उपनय कहते हैं । जैसेइसीलिए यह पर्वत धूमवाला है। हेतुपुरस्सर पक्ष के कहने को निगमन कहते हैं। जैसे-धूमवाला होने से यह अग्निवाला है। ये पाँचों अवयव परार्थानुमान प्रयोग के हैं। इनमें से कोई भी एक न हो तो 25

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