________________
न्याय-दीपिका
रहित है। फिर भी वह अन्यथानुपपत्ति के होने से (कृत्तिका के उदय हो जाने पर ही शकट का उदय होता है और कृत्तिका के उदय न होने पर शकट का उदय नहीं होता है ) शकट के उदयरूप साध्य का
ज्ञान कराता ही है। अतः बौद्धों के द्वारा माना गया हेतु का रूप्य 5 लक्षण अव्याप्ति दोष सहित है।
नैयायिकसम्मत पाँचरूप्य हेतु का कथन और उसका निराकरण
नैयायिक पाँचरूपता को हेतु का लक्षण कहते हैं। वह इस तरह से है-पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्ति, अबाधितविषयत्व और 10 असत्प्रतिपक्षत्व ये पाँच रूप हैं। उनमें प्रथम के तीन रूपों के लक्षण
कहे जा चुके हैं। शेष दो के लक्षण यहाँ कहे जाते हैं। साध्य के प्रभाव को निश्चय कराने वाले बलिष्ठ प्रमाणों का न होना अबाधितविषयत्व है और साध्य के प्रभाव को निश्चय कराने वाले समान बल
के प्रमाणों का न होना असत्प्रतिपक्षत्व है। इन सबको उदाहरण द्वारा 15 इस प्रकार समझिये—यह पर्वत अग्निवाला है, क्योंकि धूमवाला है, जो
जो धूम वाला होता है वह वह अग्निवाला होता है, जैसे—रसोईघर, जो जो अग्निवाला नहीं होता, वह वह धूमवाला नहीं होता, जैसेतालाब, चूंकि यह धूमवाला है, इसलिए अग्निवाला जरूर ही है।
इस पाँच अवयवरूप अनुमान प्रयोग में अग्निरूप जाध्यधर्म से युक्त 20 पर्वतरूप धर्मी पक्ष है, 'धूम' हेतु है। उसके पक्षधर्मता है, क्योंकि वह
पक्षभूत पर्वत में रहता है। सपक्षसत्त्व भी है, क्योंकि सपक्षभूत रसोईघर में रहता है।
शङ्का-किन्हीं सपक्षों में धूम नहीं रहता है, क्योंकि अङ्गाररूप अग्निवाले स्थानों में धुओं नहीं होता । अतः सपक्षसत्त्व हेतु का 25 रूप नहीं है।