Book Title: Nyaya Dipika
Author(s): Dharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 343
________________ तीसरा प्रकाश २०३ उसका ज्ञान कराता है। जैसे-धुएँ का अग्नि के बाद होने का नियम है, इसलिए धुआँ अग्नि का ज्ञान कराता है। प्रकृत में 'मैत्री के पुत्रपने' हेत का 'कालेपन' साध्य के साथ न तो सहभाव नियम है और न क्रमभाव नियम है जिससे कि 'मैत्री का पुत्रपना' हेतु 'कालेपन' साध्य का ज्ञान कराये। 5 यद्यपि विद्यमान मैत्री के पुत्रों में 'कालेपन' और 'मैत्री का पुत्रपन' का सहभाव है—दोनों एक साथ उपलब्ध होते हैं, पर वह . सहभाव नियत नहीं है—नियमरूप में नहीं है, क्योंकि कोई यदि यह कहे कि गर्भस्थ पुत्र में 'मैत्री का पुत्रपन' तो हो, किन्तु 'कालापन' न हो, तो इस प्रकार विपक्ष ( व्यभिचारशङ्का ) में 10 कोई बाधक नहीं है—उक्त व्यभिचार की शङ्का को दूर करने वाला अनुकूल तर्क नहीं है। अर्थात् यहाँ ऐसा तर्क नहीं है कि यदि कालापन न हो तो मैत्री का पुत्रपन' भी नहीं हो सकता है' क्योंकि मैत्रीपुत्र में 'मैत्री के पुत्रपन' के रहने पर भी 'कालापन' सन्दिग्ध है। और विपक्ष में बाधक प्रमाणों-ब्यभिचारशङ्कानिवर्त्तक अनुकूल 15 तर्कों के बल से ही हेतु और साध्य में व्याप्ति का निश्चय होता है। तथा ब्याप्ति के निश्चय से सहभाव अथवा क्रमभाव का निर्णय होता है। क्योंकि "सहभाव और क्रमभाव नियम को अविनाभाव कहते हैं" ऐसा वचन है। विवाद में पड़ा हुया पदार्थ वृक्ष होना चाहिए, क्योंकि वह शिशपा (शीशम) है, जो जो शिशपा होती है वह वह वृक्ष 20 होता है। जैसे—ज्ञात शिशपा वृक्ष । यहाँ यदि कोई ऐसी ब्यभिचारशङ्का करे कि हेतु (शिशपा) रहे साध्य (वृक्षत्व) न रहे तो सामान्यविशेषभाव के नाश का प्रसङ्गरूप बाधक मौजूद है। अर्थात् उस व्यभिचारशङ्का को दूर करने वाला अनुकूल तर्क विद्यमान है। यदि वृक्षत्व न हो तो शिशपा नहीं हो सकती; क्योंकि वृक्षत्व 25

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