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न्याय-दीपिका
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जाता है। इस व्यवस्थाके अनुसार प्रकाश ज्ञानमें कारण नहीं है। क्योंकि उसके प्रभावमें भी रात्रिमें विचरनेवाले बिल्ली, चहे। आदिको ज्ञान पैदा होता है और उसके सद्भावमें भी उल्लू वगैरहको ज्ञान उत्पन्न नहीं होता है। अतः जिस प्रकार प्रकाशका ज्ञानके 5 साथ अन्वय और व्यतिरेक न होनेसे वह ज्ञानका कारण नहीं हो सकता है उसी प्रकार अर्थ ( पदार्थ ) भा ज्ञानके प्रति कारण नहीं हो सकता है । क्योंकि अर्थके अभावमें भी केशमशकादिज्ञान उत्पन्न होता है। (और अर्थके रहनेपर भी उपयोग न होनेपर
अन्यमनस्क या सुप्तादिकों को ज्ञान नहीं होता ) ऐसी दशामें ज्ञान 10 अर्थजन्य कैसे हो सकता है ? अर्थात् नहीं हो सकता है। परीक्षा
मुखमें भी कहा है—'अर्थ और प्रकाश ज्ञानके कारण नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि प्रमाणतामें कारण अर्थाव्यभिचार ( अर्थके
शमा अभावमें ज्ञानका न होना) है, अर्थजन्यता नहीं। कारण, स्वसंवेदन
प्रत्यक्ष विषयजन्य न होनेपर भी प्रमाण माना गया है। यहां यह , 15 नहीं कहा जा सकता कि स्वसंवेदन प्रत्यक्ष चूंकि अपनेसे उत्पन्न
उत्पन होता है इसलिए वह भी विषयजन्य ही है, क्योंकि कोई भी
प्रकार वस्तु अपनेसे ही पैदा नहीं होती। किन्तु अपनेसे भिन्न कारणोंसे
अपने पैदा होती है।
शङ्का-यदि ज्ञान अर्थ से उत्पन्न नहीं होता तो वह अर्थका 20 प्रकाशक कैसे हो सकता है ?
मान्यत समाधान–दीपक घटादि पदार्थोंसे उत्पन्न नहीं होता फिर
मणि भी वह उनका प्रकाशक है, यह देखकर आपको सन्तोष कर लेना
। हुये देख चाहिये । अर्थात् दीपक जिस प्रकार घटादिकोंसे उत्पन्न न होकर
प्रमाण भी उन्हें प्रकाशित करता है उसी प्रकार ज्ञान भी अर्थसे उत्पन्न न
पहले 25 होकर उसे प्रकाशित करता है।
सविकल शङ्का-ज्ञानका विषयके साथ यह प्रतिनियम कैसे बनेगा कि
भयो
अनाव