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प्रस्तावना
के प्रमाणसंग्रहमें मिलते हैं । उन्होंने सद्भावसाधक ६ और सद्भावप्रतिषेधक ३ इस तरह नौ उपलब्धियों तथा असद्भावसाधक ६ अनुपलब्धियों का वर्णन करके इनके और भी अवान्तर भेदोंका संकेत करके इन्हीं में अन्तर्भाव हो जानेका निर्देश किया है। साथ ही उन्होंने धर्मकीतिके इस कथनका कि 'स्वभाव और कार्यहेतु भावसाधक ही हैं तथा अनुपलब्धि ही अभावसाधक है' निरास करके उपलब्धिरूप स्वभाव और कार्य हेतुको भी अभावसाधक सिद्ध किया है। अकलङ्कदेव के इसी मन्तव्य को लेकर माणिक्यनन्दि', विद्यानन्द तथा वादिदेवसूरिने उपलब्धि और अनुपलब्धिरूपसे समस्त हेतुअोंका संग्रह करके दोनोंको विधि और निषेधसाधक बतलाया है और उनके उत्तर भेदोंको परिगणित किया है । प्रा० धर्मभूषणने भी इसी अपनी पूर्वपरम्परा के अनुसार कतिपय हेतु-भेदोंका वर्णन किया है। न्यायदीपिका और परीक्षामुख के अनुसार हेतुओंके निम्न भेद हैं:
१ "सत्प्रवृत्तिनिमित्तानि स्वसम्बन्धोपलब्धयः ।।
तथाऽसद्व्यवहाराय स्वभावानुपलब्धयः । सद्वृत्तिप्रतिषेधाय तद्विरुद्धोपलब्धयः ॥"-प्रमाणसं० का०
२६, ३० । तथा इनकी स्वोपज्ञवृत्ति देखें । २ “नानुपलब्धिरेव अभावसाधनी...।"-प्रमाणसं० का० ३० ।
३ देखो, परीक्षामुख ३-५७ से ३-६३ तकके सूत्र । ४ देखो, प्रमाणपरी० पृ० ७२-७४ । ५ देखो, प्रमाणनयतत्त्वालोक का तृतीय परिच्छेद । ६ प्रमाणपरीक्षानुसार हेतुभेदों को वहीं से जानना चाहिए ।