________________
प्रस्तावना
भेद हैं--कर्मतद्व्यतिरिक्तद्रव्यमङ्गल और नोकर्मतद्व्यतिरिक्तद्रव्यमङ्गल । उनमें पुण्यप्रकृति-तीर्थंकर नामकर्म कर्मतद्व्यतिरिक्तद्रव्यमङ्गल है; क्योंकि वह लोककल्याणरूप माङ्गल्यका कारण है। नोकर्मतद्व्यतिरिक्त द्रव्यमङ्गल-के दो भेद हैं-लौकिक और लोकोत्तर । उनमें लौकिकलोक प्रसिद्ध मङ्गल तीन प्रकारका है:--सचित्त, अचित्त और मिश्र । इनमें सिद्धार्थ' अर्थात् पीले सरसों, जलसे भरा हुआ पूर्ण कलश, वन्दनमाला, छत्र, श्वेतवर्ण और दर्पण आदि अचित्त मङ्गल हैं। और बालकन्या तथा श्रेष्ठ जातिका घोड़ा आदि सचित्त मङ्गब हैं । अलङ्कार सहित कन्या आदि मिश्र मङ्गल हैं। लोकोत्तर-अलौकिक मङ्गलके भी तीन भेद हैं:-सचित्त, अचित्त और मिश्र । अरहन्त आदिका अनादि अनन्त स्वरूप जीव-द्रव्य सचित्त लोकोत्तर मङ्गल है। कृत्रिम, अकृत्रिम चैत्यालय आदि अचित्त लोकोत्तर मङ्गल हैं । उक्त दोनों सचित्त और अचित्त मंगलोंकों मिश्र मङ्गल कहा है। आगे मङ्गलके प्रतिबोधक पर्यायनामोंको' बतलाकर मङ्गलकी निरुक्ति बताई गई है । जो पापरूप मलको गलावे-विनाश करे और पुण्य-सुखको लावे प्राप्त करावे उसे मङ्गल कहते हैं। आगे चलकर मङ्गलका प्रयोजन बतलाते हुए कहा १ सिद्धत्थ-पुण्ण-कुंभो वंदणमाला य मंगलं छत्तं ।
सेदो वण्णो श्रादसणो य कण्णा य जच्चस्सो ॥-धवला १-१-१पृ.२७ २ देखो धवला १-१-१, पृ. ३१ । तिलो० प० गा० १-८ ।
३ 'मलं गालयति विनाशयति दहति हन्ति विशोधयति विध्वंसयति इति मंगलम् ।' . . . . . . 'अथवा, मंगं सुखं तल्लाति आदत्त इति वा मङ्गलम् ।' धवला० १-१-१, पृ० ३२-३३ ।
'गालयदि विणासयदे घादेदि दहेहि हंति सोधयदे । विद्धंसेदि मलाइं जम्हा तम्हा य मंगलं भणिदं ।'-तिलो०प०१-६ । 'अहवा मंगं सोक्खं लादि हु गेण्हेदि मंगलं तम्हा । एदेण कज्जसिद्धि मंगइ गच्छेदि गंथकत्तारो ॥-तिलो० ५० १-१५ ।