Book Title: Muhurtraj
Author(s): Jayprabhvijay
Publisher: Rajendra Pravachan Karyalay Khudala

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Page 16
________________ मुहूर्तराज ] मेरी ओर से ज्योतिष शास्त्र जीवन का सचित्र दर्शन है। प्राचीन शास्त्रों में ज्योतिष शास्त्र ही वह जीवित शास्त्र है, जिसे आज के भौतिक व वैज्ञानिक युग ने भी सप्रमाण व स्वयंसिद्ध माना है। इस शास्त्र की प्रामाणिकता जैन दर्शन को भी स्वीकार्य है। क्योंकि जैन दर्शन अपने ४५ आगमों के आधार पर ही अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करती है उस ४५ आगमों में ज्योतिष शास्त्र की प्रामाणिकता के आधार रूप से ग्रन्थ सूर्य प्रज्ञप्ति एवं चन्द्र प्रज्ञप्ति है। ज्योतिष के आदिग्रन्थों में ८४ ग्रह का प्रमाण मिलता है। व आज भी जब भारतीय ज्योतिष के ज्ञात नव ग्रहों पर ज्योतिष का अध्ययन करते हैं तो पाश्चात्य विद्वान हर्षल नेपच्युन व प्लुटो तीन ग्रह अधिक मानते हैं जिससे यह जैन शास्त्र के अध्ययन से जब ८४ ग्रह का प्रमाण मिलता है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं। जैन दर्शन के मूल मंत्र नमस्कार महामंत्र के ऊपर बम्बई से जैन साहित्य विकास मण्डल द्वारा प्रकाशित नमस्कार स्वाध्याय नामक ग्रन्थ में ८४ ग्रह के विषय में पठनार्थ सामग्री मिलती है। आज मानव जीवन के प्रत्येक विद्वानों ने लेखनी चलाई है। किन्तु इस शास्त्र को प्रमाणित करने में जैनाचार्यों एवं जैन दर्शन के विद्वानों एवं जैन मुनि प्रवरों ने इस को प्रत्येक दृष्टि से मय प्रमाणों से इसके अध्ययनार्थी जिज्ञासु के लिये जितना साहित्य लिखा है इतना श्रम युक्त साहित्य शायद ही अन्य दर्शनकारों ने लिखा होगा यह भी कह दूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आज के बढ़ते हुए विज्ञान के साधन सम्पन्न युग में भी यही एक मात्र ज्योतिष शास्त्र है जिसे कोई भी विद्वान चुनौती नहीं दे सका और इसके ज्ञाता पृथ्वी पर बैठकर गगन की बातें करते हैं और वर्षों पूर्व लेखनी से यह लिख देते हैं कि इस दिन आकाश में इतने बजकर इतने मिनिट पर ग्रहण होगा यानि सूर्य या चन्द्र के नीचे से ग्रहों के यानि राहु केतु के विमान निकलते हैं तो उसे ग्रहण कहते हैं, एवं जन्म कुण्डली के ऊपर से फलित ज्ञान के विद्वान् मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन के प्रत्येक कार्य को कह सकते हैं जिस प्रकार दर्पण के सन्मुख अपनी मुखाकृति स्पष्ट दिखती है ठीक उसी प्रकार ज्योतिष के फलित के विद्वान को कुण्डली में कुण्डली के धारक का जीवन दर्शन होता है। जीवन में प्रतिपल ऐसे क्षण आते हैं कि मनुष्य को कई कार्य करने पड़ते हैं। फिर वह कार्य स्थाई हो या अस्थाई हो या दर्शन से सम्बन्धित हो या आत्मा से ऐसे प्रत्येक कार्य को शुभ घड़ी और शुभ समय पर प्रारम्भ किये तो वे जरूर सफल होते हैं एवं इच्छित फल को प्राप्त भी होते हैं। ऐसे ही कार्यों के मार्ग दर्शन के लिये त्रिस्तुतिक समाज के विद्वान उपाध्यायजी श्रीमद् गुलाबविजयजी महाराज ने जो कि ज्योतिष शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान् थे। उन्होंने गहन अध्ययन के द्वारा प्रत्येक कार्यों को ज्योतिष की दृष्टि से कार्य में प्रतिपादित करने की भावना से शास्त्रों के प्रमाणों द्वारा इस "मुहूर्तराज” नामक ग्रन्थ में जैन एवं अजैन विद्वानों के प्रकाशित ग्रन्थों के उद्धरणों को संकलित किया। मूल ग्रन्थ संस्कृत में संकलित कर प्रेस कापी को वि.सं. १९७६ के कार्तिक शुक्ला ५ ज्ञान पंचमी को राजस्थान के प्रसिद्ध बागरा नगर में तैयार की। इसी ग्रन्थ की एक प्रतिलिपि सियाणा नगर में श्री सुविधिनाथ भगवान के विशाल प्रांगण में ज्ञान भण्डार में सुरक्षित थी। संयोगवश विक्रम सं. २०२४ में परम पूज्य शासन प्रभावक कविरत्न सौम्यमूर्ति आचार्य देव श्रीमद्विजय विद्याचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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