Book Title: Mandukya Karika Author(s): Chinmayanand Swami Publisher: Sheelapuri View full book textPage 7
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरकाशी के परमपूज्य श्री तपोवन जी महाराज ___का दिव्य-सन्देश यहाँ हम उत्तरकाशी (हिमालय) के परम पूज्य श्री तपोवन जी महाराज का सन्देश उद्धृत करते हैं जिसमें महाराज ने पवित्र आशीर्वाद के साथ हमें प्रोत्साहन-रूपी दिव्य-प्रसाद भी दिया है। श्री स्वामी चिन्मयानन्द जी को उत्तरकाशी के इस ऋषि के पवित्र चरणों में बैठने और उनसे ज्ञान प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। सम्पादिका आचार्य का शुभ सन्देश ब्रह्म ही यथार्थ है। इसके बिना कोई पदार्थ वास्तविक नहीं। सभी विश्व, जिमे सूर्य, चन्द्रमा तथा नक्षत्र प्रकाशमान करते रहते हैं, एक दीर्घ-कालिक स्वप्न नहीं तो और क्या है ? यह चिरस्थायी विश्व, जिसे हम जाग्रतावस्था में देखते रहते हैं, किस प्रकार स्वप्न माना जा सकता है ? इस महान 'माण्डूक्य कारिका' में परम-द्रष्टा तथा आचार्य श्री गौड़पाद ने उक्त प्रश्न का उत्तर देने का सफल प्रयास किया है । 'कारिका' में अनेक दृष्टान्त तथा युक्तियों द्वारा इस बात को स्पष्ट तः सिद्ध किया गया है कि यह विश्व स्वप्न' ही है। मान लीजिए कि यह विश्व एक यथार्थ तत्व का आभासमात्र है । इस बात को सोचते रहने तथा समय नष्ट करने से हमें क्या लाभ होगा ? इस समस्या पर विचार करते रहने से हम निश्चित रूप से यह परिणाम निकाल सकते हैं कि यह संसार तथा इसके विविध पदार्थ क्षणिक एवं अवास्तविक हैं और इन क्षण-स्थायी सांसारिक For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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