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मन्दिर
(१९)
ब्रह्म बेला का महत्त्व को संस्कारित करने के लिये “जिसने रागवेष कामादिक जीते...." वाली, "मेरी भायना" याद कर लेना चाहिये और उसे गुन-गुनाते रहना चाहिये।।
खोलकर, पामा हस कपका को जोड़कर, पोत्रों अंगूठों को छोड़कर, शेष बीच की आठ ऊँगुलियों के चौबीस पोरों में चौबीस तीर्थंकरों के नाम स्मरण करते हुए, हाथों को देखें | कई महानुभावों को चौबीस भगवानों के नाम भी याद नहीं होंगे । यदि नाम याद हुए भी तो उनके चिन्ह याद नहीं होंगे । अतः उनकी स्मृति के लिये चौबीस तीर्थंकरों के नाम चिन्ह सहित लयबध्य पढ़ सकें, याद कर सकें, इस उद्देश्य से बोलो.
ऋषभनाथ के बैल बोलो, अजितनाथ के हाथी । सम्भवनाथ के घोड़ा योलो, अभिनन्दन के बन्दर । सुमतिनाथ के चकवा बोलो, पद्मप्रभ के लाल कमल । सुपार्श्वनाथ के सोधिया बोलो, चन्द्र प्रभ के चन्द्रमा । पुष्पदन्त के भार बोलो, शीतलनाथ के कल्पवृक्ष । श्रेयांसनाथ के गैंडा बोलो, वासुपूज्य के भैंसा। विमलनाथ के शूकर चोलो, अनन्तनाथ के सेही। धर्मनाथ के यदण्ड बोलो, शान्तिनाथ के हिरण। कुन्थुनाथ के बकरा बीलो, अरहनाथ के मधली। मल्लिनाथ के कलशा वोलो, मुनिसुव्रत के कछुआ। नभिनाथ के नीलकमल हैं, नेमिनाथ के शंख।
पार्श्वनाथ के सर्प बड़ा है, महावीर के सिंह। हाथ (कर) दर्शन का महत्त्व अन्य शास्त्रों में भी बताया गया है.
कराग्रे वसते लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती।
कर मूले तु गोविन्दः प्रभाते कर दर्शनम् ।। अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी का, मध्य भाग में सरस्वती का एवं मूल भाग में हरि! प्रभो।। ईश्वर!!! का निवास है । अतः प्रतिदिन प्रातःकाल हाथ (कर) का दर्शन करना चाहिये ।
उपर्युक्त श्लोक बोलते हुए अपने हाथों को देखो। यह मनोवैज्ञानिक एवं अर्थपूर्ण प्रक्रिया है। इससे व्यक्ति के हृदय में आत्म-निर्भरता, स्वावलम्बनता की भावना का उदय होता है । यदि वह ऐसा नहीं करे तो वह अपने जीवन के प्रत्येक कार्य में दूसरों की तरफ, दूसरों का मुख देखने का अभ्यासी बन जाता है। अतः संसार में मनुष्य जो भी भला या बुरा कार्य करता है, हाथों से ही करता है। ये हाथ ही धर्म-अर्थ-काम एवं मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों की कुंजी हैं।