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मन्दिर
(६७)
माला क्यों?
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हर धर्म संस्कृति के जितने भी जाप अनुष्ठान के उपक्रम हैं, वे सन्तुलित हैं, व्यवस्थित हैं । १०८ दाने उस माला के अन्दर क्यों होते हैं ? १०८ के सभी अंकों को आपस में जोड़िये नो नो बन जायेंगे । विश्व के अन्दर ९ (नौ) की संख्या ऐसी है कि इसको दुगुना करते जाओ और उसका योग लगाओ तो ९ (नौ) ही निकलता है।
हमारे दैनिक जीवन में किसी भी कार्य को हम सम्पादित करते हैं, वह भी १०८ प्रकार से होता है | चाहे पाप रूप हो, चाहे पुण्य रूप हो, चाहे अच्छा हो, चाहे बुरा हो । माता-बहनें
आलोचना पाठ पढ़ती है। जिनवाणी के अन्दर आलोचना पाठ है | उसके अन्दर लिखा है कि हम जो दैनिक कर्म करते हैं वो भी १०८ प्रकार से होते हैं।
"समरंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ।
कृत कारित मोदन करिक, क्रोधादि चतुष्टय धरि।।" इन सबको परस्पर में आप मिलाईये । समरंभ, समारंभ, आरंभ तीन | मन, वचन, काय तीनों को तीन से गुणा कर दो। (३ x ३ -९) कृत. कारित. अनुमोदना फिर गुणा कर दो। (९ ४३ =२७) क्रोध, मान, माया, लाभ (२७ ४ ४ =१०८) इनके वशीभूत होकर मनुष्य हर कर्म को करता है । चाहे वह अच्छा हो या चुरा । चारों कषायों का उपशमन करेगा तो अच्छे कर्म करेगा और चारों कपायों के साथ चलेगा तो बुरे कर्म करेगा।
समरंभ क्या है? किसी भी कार्य की संकल्प शक्ति मन के अन्दर अवतरित करना । किसी भी अच्छे, बुरे कर्म के संकल्प को मन के अन्दर अवतरित करना समरंभ है। अव उस कार्य को किस प्रकार से फली भूत किया जाए? उस कार्य को कैसे सम्पादित किया जाए? उसकी सामग्री जुटाना, वह है समारंभ | और जब सामग्री जुट गयी तो उसको परिपुर्ण रूप दिया जाए, व्यावहारिक रूप दिया जाए तो वह है आरंभ।
स्वयं करना कृत है । दूसरे से कराना कारित है और कोई कर रहा है, उसकी प्रशंसा करना, उसको प्रोत्साहन देना वह अनुमोदना है । क्रोध, मान, माया, लोभ की बात तो सभी जानते हैं। गुस्सा करना क्रोध । अहंकार करना मान | छिपाना, कुटिलता रखना-माया | लालच-लोभ । इतनी प्रकार की प्रक्रियाओं से कर्मों का आस्रव होता है जो हमारी आत्मा को सुखी व दुःखी करते हैं। जब अच्छे मार्ग में समरंभ, समारंभ, आरंभ, कृत, कारित, अनुमोदना, मन, वचन, काय
और क्रोध, मान, माया, लोभ की स्थिति को संभालते हुये लग जायेंगे। तो अच्छा प्रतिफल देते हैं। इन्हीं का ही हम कोई दूसरा रूपक ले लें तो विपरीत प्रतिफल देते हैं।
उन १०८ कर्मों का आस्रव हमारे जीवन से निकल जाए, माला इसीलिये फेरी जाती है। प्रभु का स्मरण १०८ प्रकार से किया जाता है। हमारे १०८ प्रकार के माध्यम से जो अशुभ